________________ // 147 // स्यापि धारिणी / कान्ता नैवाद्भुतं यस्याः खले प्रीतिरजायत // 87 // स गच्छन्नन्यदा राजा बहिः कश्चित्तपस्विनम् / मासोपवा-* सिनं क्वापि विजने स्थितमैक्षत // 88 // स चैवमभिजग्राह मासान्ते पारणं मया। कार्यमेकगृहप्राप्तभिक्षयैवान्यथा न तु // 89 // कंसस्योप्रतिमासं पारयित्वा स चैकगृहभिक्षया / जगाम विजने नान्यसदने तु कदाचन // 90 // स प्रार्थ्यतोग्नसेनेन सानहं मासपारणे / त्पत्ति प्राप्तश्चानुपदं गेहे दैवात् किन्त्वस्य विस्मृतः // 91 / / तस्मादपारयित्वैव मुनिः सोऽगात् स्वमाश्रयम् / भेजे कष्ठेऽपि सन्तुष्टः पुनर्मा- Tale कथनम् सतपःक्रियाम् // 92 // पुनर्ददर्श तं राजा तत्रायातः कथञ्चन / स्मृत्वा निमत्रित स्वागोऽक्षमयच्चटुभिर्मुहुः // 93 // भूयो न्यमत्र| यत्तं स प्रागवद् व्यास्मारयत्पुनः / अभुक्त्वैव मुनिः सोऽगात् स्वस्थानं शान्तधीः पुनः॥९४॥ तं नृपोऽमर्षयत् प्राग्वत स्मृत्वा विनि| तपारणम् / भूयो भोक्तुमभाणीच धिग्मूख विजृम्भितम् // 95|| भाविकर्मोदयादेवं राज्ञा त्रिर्भग्नपारणः / चुकोप तापसस्तोयं दहेत् किं नातितापितम् // 16 // प्रेत्यहन्ता नृपस्यास्य भूयासं तपसाऽमुना / निदानमितिकृत्वा स विधायाऽनशनं मृतः // 97 // तस्यैव | राज्ञः प्रेयस्या धारिण्या उदरेऽजनि / पुत्रत्वेन क्लप्तभर्तृमांसभक्षणदोहदः // 98 // युग्मम् / / कृष्णपक्षेन्दुलेखेव क्षीयमाना दिने दिने / | राज्ञे राज्ञी हियाख्यत्तं कष्टेनाधमदोहदम् // 99 // ध्वान्ते स्थितस्य भूपस्य न्यस्य तुन्दे शशामिपम् / छेदं छेदं ददुर्देव्याः पश्यन्त्याः सचिवास्ततः // 300 / / साऽऽसदत् प्रकृति मुख्यामेवं पूरितदोहदा / प्रोचे विना प्रियं प्राणैः किं ? मे गर्मेण वा मुना // 1 // सोचे मुमूर्षुः सचिवैः सप्तरात्रेण ते प्रभुम् / अवश्य दर्शयिष्यामः पुनरप्याप्तजीवितम् // 2 // इत्याशादत्तधैर्यायास्तस्याश्चाहनि सप्तमे / अदर्शि राजा तैश्चक्रे तयाप्याशु महोत्सवः॥३॥ पूर्णेऽवधौ विधौ मूलनक्षत्रं संश्रिते निशि / विष्टौ कृष्णचतुर्दश्यां पौपस्याऽसूत सा // 147 // | सुतम् // 4 // दोहदज्ञातदौरात्म्यात्सा तस्माद् बिभ्यती द्रुतम् / निदधे कांस्यपेटायां घटितायां पुरैव तम् // 5 // सपत्रिकामात्मराज