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________________ श्रीअमम पूज्यपादास्ते अप निजाकत निश्चित्याचा जमतेनोद of नारदोबारुतखशुभोदयाचतामिव एभिगुणैः / नानारदः // 49 // o यमुस्तु मे / / // 134 / / | घात्योऽयं तत्र कुक्कुटः / इत्यादेशं गुरोर्मन्ये दुःकरं तदसम्भवात् // 39 // पश्यन्ति ज्ञानिनः सिद्धा लोकपालाश्च खेचराः / पश्याम्य जिन| हमतः क्वापि स्थानमद्रष्टकं नहि // 40 // तन्मन्ये बुद्धिरस्माकमुपाध्यायैः कृपालुभिः / परीक्षितुं विधिद्वारा निषेधोऽयं निरूपितः चरित्रम् | // 41 // ये जीवेषु दयालुखं सूक्ष्मेष्वपि शुभैषिणः / पुष्णन्ति पूज्यपादास्ते घातयेयुरमुं कथं ? // 42 // रक्ष्योऽयमिति निश्चित्य गुरु क्षीरकदम्ब केन खी| पादान्तमागमत् / दयावतेऽनवकीर्णी नारदोऽक्षतकुक्कुटः // 43 // नत्वा चैप निजाकृतं शशंस गुरवेऽखिलम् / अमन्दानन्दमुत्थाय कृता दीक्षा तेनापि परिषष्वजे // 44 // सुशिष्यस्यास्य सुकृतद्विरुक्तस्वशुभोदयः। लप्स्ये सुखममुत्रेति निश्चित्याथाऽऽचि च वयम् // 45 // अने| नाचरणेनैप नूनं द्यामाश्रयिष्यति / रोगी वैद्योपदिष्टन पथ्येनोल्लाघतामिव // 46 // अहो पात्रमिदं प्राप्य मच्छ्रतेनोदकृष्यत / स्वात्य म्भसेव क्षारोदशुक्तीमुक्तात्वदायिनीः॥४७॥ अभ्यनन्दि च धन्योऽसि यस्य धीरष्टभिगुणैः / नेत्ररिव कृतोन्मेपैस्तत्वं स्वयमुदक्षत // | // 48 // पं० कु०॥ गुरुसंभावनोद्भूतगुणभारादिवानतम् / मुनिं विनयाऽवाञ्चं विभ्रन्नत्वाऽथ नारदः // 49 / / आपृच्छ्य च गुरु | स्वच्छप्रतिभोदरदर्पणे / लीलासंक्रामिताशेपविद्यः स्वं स्थानमाश्रयत् // 50 // युग्मम् / / सुतः पर्वतकः प्रेयानऽतिपुत्रो वसुस्तु मे।। | यास्यतो नरकं यस्मात् स्वं लूपित्वा गृहे खलु // 51 // वैराग्यादित्युपाध्यायः प्रावाजीद् गुरुसन्निधौ / तत्पदे पर्वतः शास्त्रोपदेशाचा-18 यकं व्यधात् // 52 // भाराद् वैवधिक इव विषयेभ्यो विरक्तधीः / अतिष्ठिपद् वसुं राज्ये प्राब्राजीवऽभिचन्द्रराट् // 53 // वासय- सर्ग-४ ष्टाविव भुजे वासयन् श्रीशिखण्डिनीम् / वसुर्वसुमतीनाथः स बभूवातिवासवः // 54 // पृथिव्यां प्रासरत् कीर्तिर्वसोः सुनृतवागिति / | तद्रक्षणाय सर्वत्र सत्यमेव जगाद सः // 55 / / विन्ध्येऽन्यदा मृगव्याय जग्मिवान् कोऽपि लुब्धकः / आरोप्य धनुरक्षेप्सीदिषु मृग- // 134 // जिघांसया // 56 // शरोऽन्तरा विन्ध्यसानावास्फाल्य स्खलितोऽपतत् / तद्धेतुमथ जिज्ञासुरस्पृशत्पाणिना शिलाम् // 57 // स विस्मि-II पण्डिनीम् / वसुवनज्यदा मृगवतद्धतुमथ जिज्ञा
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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