________________ // 133 // |गुणरन्तःकृतस्थितिः // 20 // तेन चेदिषु विन्ध्याद्रिभुवि शुक्तिमतीति पूः / स्थापिता शुक्तिमत्याख्यसिन्धुसन्निधिशोभिनी // 21 // वसुरित्यभिधानेन धीमान् वसुसमद्युतिः / सनयस्तनयस्तस्य बभूव विनयकभूः // 22 // क्षीरकदम्बतत्र क्षीरकदम्बोऽभूदग्रणीरग्रजन्मनाम् / वेदानऽधिजिगांसूनामुपाध्यायपदं दधद् // 23 // नृपात्मजं वसं शिष्यं नारद कृतापरीक्षा वसुनृपापर्वतं सतम / सोऽध्यापिपद विशेषेण त्रीन् शिष्यान् प्रशिलानऽमृन् // 24 // रात्रौ स्वपत्सु सौधाग्रे तेषु पाठश्रमादथ / खे यान्तौ दीनाम् चारणमुनी वाचमित्यूचतुर्मिथः॥२५॥ यास्यति खगेमेष्वेको नरकं द्वो गमिप्यतः। श्रुखा जागदुपाध्यायो दध्यौ किमपि दर्मनाः // 26 // समया मामधीयानौ शिष्यो नरकगामिनौ। धिग्मामिति निनिन्द खं तौ ज्ञातुं चोपचक्रमे // 27 // प्रातस्त्रयाणामप्येषां सो विशेषात समार्पयत / अन्तर्लाक्षारसापूर्णमेकैकं पिष्टकुक्कुटम् // 28 // शैक्षास्त्रींस्तानऽथाऽऽदिक्षदेकान्ते कुक्कटा अमी। बिमश्य वध्यास्तत्रैव यत्र कोऽपि न पश्यति / / 29 / / वसुपर्वतको गत्वा विजने क्वापि कानने / अवधिष्टां कुक्कुटौ तौ गतिं स्वामिव दर्मती // 30 // आख्यतां च गुरोरेत्य घातं कुक्कुटयो रहः / निरणेपीत्तयोः सोऽपि नरकाध्वनि पान्थताम् // 3 // तत्रैव कक्कटौ वध्यौ यत्र द्रष्टा न कश्चन / इत्यादिष्टौ मया दुष्टावाचेरथुरनीदृशम् // 32 // देवाः पश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानिनः पश्यथो युवाम / अनेकदाष्टके देशे कथं ? कुक्कुटौ हतौ // 33 // कोऽयं मतिविपर्यायः कोयं कारुण्यविप्लवः / गुरुवागन्यथाकारे का रे वामिह धृष्टता ? // 34 // | धिग्मुर्खावहिपोती वां त्याज्यौ दूरे दुराशयौ / इदं यदास्ये शास्त्रार्थपीयूषं विपसादभूत् // 35 / / युवामभव्यावऽद्रव्यं न संस्कार्यों कथश्चन / न पाराश्चीत्वमाधत्तेऽशूची यत्नशतैरपि // 36 // अध्याप्याऽलमतः पापावप्रेक्षापूर्वकारिणौ / अभ्यग्रहीदिति गुरुरुपेक्षा हि dime कुवुद्धिषु // 37 // नारदस्तु शुभवर्णसिद्धये सिद्धपारदः / रहः स्थिखा गुरोर्वाचां तात्पर्य पर्यचिन्तयत् // 38 // कोपि द्रष्टा न यत्रास्ति ॐ // 133 //