________________ श्रीअमम जिन // 130 // चरित्रम् | अश्वजीवदेवेन भृगुपुरे मुनिसुव्रतजिनचैत्यनिपिनम् प्रख्यापयिष्यति // 27 // श्रुत्वेति भूभुजा सोऽश्वः क्षमयित्वा व्यमुच्यत / खैरचारे पुरे चास्य स्वरूपमुद्घोप्यत // 28 // विजहार ततोऽन्यत्र भगवान् मुनिसुव्रतः / भव्याम्भोजप्रबोधाय संचरन् भानुमानिव // 29 / / अश्वोऽप्यचित्तं गृहानस्तृणाम्भो भव्यवेश्मसु / क्रमात्समाधिना मृत्वा महस्रारे सुरोऽजनि // 30 // चैत्यमत्युनतं विंशस्याहतः प्रतिमामपि / एप पीमियदेवोऽवायबोधधरातले // 31 // तीर्थमश्चालनोधारख्यमवाप्यम्ति भूगोः पुरे / ततः प्रभुति तल्लोके प्रसिद्धिमगमत्पराम् // 12 // इत्येकादशमासोनाष्टिमाः केवलाययः / पृथ्व्यां विहरतो वर्षसहस्राः स्वामिनोऽत्ययुः // 33 // श्रमणानां सहस्राणि त्रिंशदासंस्तपोजुपाम् / श्रमणीनांतु पश्चाशत्महस्राणि शुभात्मनाम् // 34 // चतुर्दशपूर्वभृतां प्राज्ञानां पञ्चशत्यभूत / अवधिज्ञानयुक्तानामष्टादशशती पुनः // 35 / / मनःपर्ययिण मार्द्ध सहसं समजायत / शतान्यष्टादशाऽभूवन केलज्ञानशालिनाम् // 36 // स्फुरक्रियलब्धीनां मुनीनां द्विमहसयभृन् / बादलब्धिमतामासन द्वादशैव शतानि तु // 37 // लक्षगक श्रावशाणां द्वासप्ततिमहत्यपि / लक्षत्रयं श्राविकाणां साई शुद्धात्मनामभून् // 38 // इयन्नं देवलोत्पत्तेनिज संघ व्यधात्प्रभुः / ज्ञात्वा स्वमुक्ति मासेन सम्मेतं | चादिमागमत् // 39 // तीर्थशान् सप्तदश यः कृत्वा निर्विग्रहान् सुखम् / न्यस्य नित्ये पदे स्वस्य नियोहयद् गिरिराजताम् // 40 // समं सुनिसहलेग तमारुह्य महाचलम् / प्रदेऽनशनं मासमथ श्रीसुव्रतः प्रभुः / / 41 / / युग्मम् / / स तदाययुः पाकशासनाश्चलितासनाः / सत्पादान्ने निपदश्च शिष्यवत्कृतवन्दनाः // 42 // पर्यकस्थो ज्येष्ठकृष्णनवम्यां श्रवणे च मे / मामाने शध्यानस्यान्तिमौ भेदी विचिन्तयन् // 43 // कर्मक्षयानिष्ठितार्थः प्राप्तानन्तचतुष्टयः / स्वाम्यगात् निर्वृतिपुरी वर्मना सहजार्जुना // 44 // तत्रानन्तं निरूपम जीयो ज्योनिर्मयः प्रभोः / पूर्वदेहात किश्चिदनः शाश्चतानन्दमासदन // 45 // अमाप्तगर्मणां तेन सामिनिर्वाणपर्वगा। नार संग-४ // 130 //