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________________ श्रीअमम जिन चरित्रम् // 124 // कृतदीक्षामहोत्स वस्य प्रभोर्दीक्षा क्षणास्तत्र तत्क्षणादाययुर्मुदा // 14 // ते च प्रणम्य सौमित्रिं सुव्रताद्याश्च भूभृतः / आदेशं प्रार्थयामासुव्रतराज्याभिषेचने // 15 // ते तस्यानुज्ञया चक्रुरभिषेकोत्सवं ततः / तीर्थाम्भोभिः स्वर्णकुम्भोन्मुक्तैर्मुक्ताफलोज्वलैः // 16 // वस्त्रालंकरणैर्दिव्यैः सौधर्मेन्द्रो नियोगिवत् / प्रभुं विभूषयामास दिव्यद्रुममिवामरः // 17 // नाम्नाऽपराजिताख्यस्य विमानस्य समां नवां / असमानां पुनर्लक्ष्म्या शिबिकामपराजिताम् // 18 // नरामरसहस्रेणोद्वाह्यां शक्रेण कारिताम् / आरुह्य प्राङ्मुखे सिंहासने स्वामी निपेदिवान् / / 19 / / मुरैनि धृतश्वेतच्छत्रः प्रोद्धृतचामरः / अप्सरःक्लुप्तसंगीतः पौरस्त्रीकृतमंगलः // 20 // सुव्रताद्यैर्महीनाथैः स्वर्नाथैश्वाच्युतादिभिः / अन्वीयमानः श्रीराजगृहान्नाथो विनिययौ // 21 // रसालैमञ्जरीजालवाचालमधुपवजः / स्वाम्यागमे वनदेवी प्रारब्धोलूलुमंगलम् // 22 // सिन्दुवार| वनं कुन्दवनं च कुसुमैः सितैः / पूर्ण मौक्तिसम्पूर्णरत्नपात्रसमं दधत् // 23 // आमोदिभिर्दमनकैबिंभ्रन्मरुबकैरपि / स्वामिसेवार्थिनौ | मन्ये वसंतशिशिरौ समम् // 24 // भूविशीर्णमरुत्कीर्णजीर्णपर्णस्वनैघनैः। पञ्चशब्दध्वनि विस्तारयत् प्रविशतः प्रभोः // 25 / / * मरुवेल्लत्प्रौढवल्लीबद्धहल्लीसकक्रमम् / ययौ नीलगुहानामोद्यानं श्रीमुनिसुव्रतः // 26 / / पं० कु० // स तत्र शिविकोत्तीर्णस्त्यक्तभूषण| संहतिः / देवदृष्यं दधौ स्कन्धे वस्त्रं शक्रापितं प्रभुः // 27 // दोःस्तम्भशिखरे रेजे तद्विभोनिघ्नतः स्वयम् / उद्भटान् मोहसुभटा नात्तः पट इव स्फुटः // 28 // फाल्गुनश्वेतद्वादश्यां श्रवणस्थे निशाकरे / कृतषष्ठतपाः स्वामी पश्चाद्भागे दिनस्य च // 29 // पञ्चभि| मुष्टिभिः केशान् मौलेरामूलतस्ततः / उच्चखानान्तरारातिस्फातिमूलकुटुम्बिनः॥३०॥ क्षीराब्धौ तान् द्रुतं क्षिप्वाऽवारयत्तुमुलं हरिः / / चारित्रमाददे स्वामी कृत्वा सिद्धनमस्कृतिम् // 31 // नारकाणामपि तदा क्षणं शाश्वतदुःखिनाम् / सुखमासीत् किमन्येषां वाच्य | स्वर्भूजुषां पुनः // 32 // केवलश्रीवराकर्षवदुपास्तजिनं तदा / ज्ञानं मनःपर्ययाख्यं मनोद्रव्यप्रकाशकृत् / / 33 // प्रभी प्रत्र सर्ग-४ // 124 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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