________________ जिन चरित्रम् मत्रिणा कृतः तप्राप्तिप्रपश्च: श्रीअमम अलिः॥२७॥ देव ! शत्रोभयं किं ते ? विकारः कोऽपि ? वाऽपरः / मनसः शून्यताहेतुः केतुर्भूमेरिवाऽभवत् // 28 // राजाऽवदत् क? भीः शत्रोस्त्वयि मंत्रिणि जाग्रति / विकारोऽपि त्वयाकारविदा ज्ञातोऽथवा शृणु // 29 / / सर्वस्त्रीरूपसर्वस्वहरा मे पश्यतोहरा / // 108|| Sil नृलक्ष रक्षितस्यापि काऽप्यहापन्मिनोमणिम् // 30 // विहस्य सचिवोऽवोचत् चित्तचौरी मयेक्षिता / तवानीयाऽर्पणीयाऽस्ति तदौ-* ac चित्यस्य सिद्धये // 31 // वीरशालाधिपवधूश्चक्षुर्गोनरचारिणी। बभूव तव भूनाथ ! जयन्ती रतिरम्यताम् // 32 // इति ब्रुवाणं सचिवं || सानन्दो मेदिनीपतिः। इंगिताकारकुशलमालिलिंग मुहुर्मुहुः॥३३॥त्रि०वि०॥ विज्ञप्तः सचिवेनाथ रोगात इव दुर्मनाः ।याप्ययान || | समारुह्य राजा स्वं सौधमागमत् // 34 // दूत्ये नियुक्ताऽमात्येनात्रेयी प्रवाजिका गता / वनमालागृहं साशीस्तयोत्थाय नताऽवदत // 35 / / म्लानासि हेतुना केन हिमेनेव कुमुद्वती। किमद्य ? चिन्तयाश्चिता कान्तिरन्यादृगेव ते // 36 // सर्वांगीणांगरागेण चान्दनेel नाद्य सुन्दरि! / लब्धमिथ्याभिशापे च संतप्ता किमु ? दृक्ष्यसे // 37 // वनमालाऽलपन्मातर्गोप्यं ते मे न किञ्चन / दुःप्रापप्रार्थनैवेयं Jakalमां मुकीकर्तमिच्छति // 38 // किं वच्मि मन्दभाग्याऽहं बाद भूपेऽनुरागिणी। भूस्थिता हरिणीवास्मि मृगांकमृगकामका // 39 // | | दैवान्मंत्राच तद्योगो दुर्घटोऽपि घटेत वा / राज्ञा योगस्तु मे हीनजातेः स्वमेप्यसम्भवी // 40 // तामवोचदथात्रेयी वत्से ! धत्से कुतः शुचम् / सन्ति ह्यचिन्त्यशक्तीनि मणिमंत्रौषधानि मे // 41 // सुरनाथमपि स्वर्गात्पातालादपि वासुकिम् / क्षमाऽहं तुभ्यमानेतुं किं न सन्निहितं नृपम् ? // 42 // प्रातः संघटयाम्येव पुत्रि ! त्वां क्ष्माभुजा सह / प्रवेक्ष्याम्यथवा वन्हि तत् खेदं मा वृथा धृथाः // 43 // आश्वास्यैवं वनमालामात्रयी मंत्रिणे जवात् / आख्यत् कार्यस्य संसिद्धिं सोऽपि हृष्टाय भूभुजे // 44 // प्रदोषे चान्द्रमालोकं | be सान्द्रं विभ्रति निर्मलम् / सा परिवाजिकाऽभ्येत्य वनमालामदोऽवदत् // 45 // कृतो मया त्वदर्थेऽद्य पार्थिवः स्नेहसंभृतः / चन्द्र-* स हेतुना केन शाप च संतप्ता कियाऽहं बाद भूपातः स्वमेष्यतापातालादपि बामदत् खेदं मा वृथा मालोकं घटेत था / झाग्याऽहं बाढं भूपेऽनुरागमालालपन्मातर्गोप्यं // 36 // सर्वांगीणांगरागण सर्ग-३ // 108 //