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________________ श्रीअमम जिन // 106 // चक्रे गुरोरग्रे पुनः संशुद्धवासनः // 78 // लघुविराधनां तां तु निदानविहितां निजाम् / बालो नालोचयामास संक्लिष्टपरिणामतः // 79 // तौ ललितगंगदत्तौ स्वायुः पूर्ती मृतावथ / जज्ञाते सप्तमे कल्पे सुरौ शुक्रे महर्दिकौ // 80 // रत्नांगदहेमांगदसंज्ञौ तौ तत्र निन्यतुः। | कालं सप्तदशांभोधिमानं निरुपमैः सुखैः // 81 // अममचरिते भाविन्येतद् द्वितीयभवे लघोबतहतिमथ ज्येष्ठाख्यातां शुकस्य विड-| *म्बनाम् / अयि सहृदयाः श्रुत्वा शुद्ध रतिं कुरुत व्रते त्यजत निकृतिं धर्म श्राद्धोचितं श्रयत श्रिये // 82 // इत्याचार्यश्रीमुनिरत्नविरचिते श्रीअममस्वामिचरिते महाकाव्ये लघुबोधार्थ ज्येष्ठोपक्रान्तशूद्रकसाधुव्रतखण्डनाफलशुकभवविडम्बनातत्कथासमुच्चय भ्रातृदयद्वितीयभवान्त्याराधनातृतीयभवदेवभवाप्तिवर्णनस्तृतीयस्सर्गः / / चतुर्थः सर्गः। चरित्रम् ललितगंग| दत्तौ शुक्र महद्धिंकसुरौ हरिवंशोत्पत्ति कथनं च सर्ग-४ हरिवंशेऽथ तौ बन्धू स्वर्गादऽवतरिष्यतः / यदोः कुले रामकृष्णाभिधानौ पुरुषोत्तमौ // 1 // अतः प्रस्तूयतेऽस्यैव तीर्थभूतस्य | पावनी। उत्पत्तिः प्रथम तीर्थनायकद्वयजन्मना // 2 // अस्ति वत्सेष्वऽतुल्यश्रीः कौशाम्बीति महापुरी / सख्येव शोभितोपान्ता सरिता सूर्यजन्मना // 3 // प्रसादा यत्र श्रृंगाग्रन्यस्तस्वर्णध्वजच्छलात् / स्वास्तर्जनीरिवोन्नाम्य तर्जयन्त्यमरावतीम् // 4 // कपिशीर्षेः | सितैवृत्तैर्वप्रस्तत्रोज्वलो बभौ / मुक्तामणिपरिक्षिप्तदन्तताडङ्कवद् भुवः // 5 // विद्याचतुर्मुखः कीर्तिमल्लीवासितदिग्मुखः। रणेऽरिसम्मु. खस्तत्र सुमुखो पार्थिवोऽभवत् // 6 // प्रत्यर्थिदानावसरेऽनिस्तृशो दृढमुष्ठिताम् / अधान्न दानवीरस्य यस्य पाणिस्तु दक्षिणः // 7 // // 106 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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