________________ // 99 // राज्ञः सतीत्वप्रत्ययः म्लानिमद्यापि नाश्चति // 48 // मया यन्महिमाऽश्लाघि शिबिरे त्वत्पुरस्तदा / सतीमतल्लिका सेयं प्रिया मम सुलोचना // 49 // इयं | | प्रभुः प्रमाणं च मूर्त्ता लक्ष्मीश्च मद्गृहे / आकार्य पृच्छयतामेषा वेद्मि नाहं तु किश्चन // 50 // अथाहूय रहो राज्ञा सती पृष्टा सभतृका / ऊचे पितृसमः स्वामी किश्चिद् गोप्यं न तत्र तत् // 51 // पिशाचाः शीलसाचिव्यात् सिद्धाः सन्ति त्रयो मम / बसन्ति च गृहे मूर्तास्ते धनं ददतीप्सितम् // 52 / / सती जयत्यसौ शीलात् किमश्रद्धेयमीदशात् / दिष्ट्याऽद्य पुनरुन्मग्नं शंकाकान्मनो मम // 53 // मन्ये छद्म प्रयुज्येदं धनमादाय ते गताः / कामांकुराद्याः क्वापीति चिन्तयन्नबवीन्नृपः // 54 // अयि ! कल्याणि ! धन्याऽसि | यस्यास्तव सुरास्त्रयः / सिद्धाः कामगवीचिन्तामणिकल्पद्मा इव / / 55 / / ममैतानऽधुना देहि कृतार्थयितुमर्थिनः / तवेव यदि यच्छन्ति | यथेच्छं मम वांच्छितम् // 56 // एसा प्रोचे कियदेतद् यत्प्राणा अपि वशे प्रभोः। दिवा चरन्ति नैते तन्निश्यानेष्ये भवद्गृहम् // // 57 // गृहदेवालयेऽत्यन्तपवित्र स्थापिताः स्वयम् / मत्समक्षं त्वयाऽभ्यर्थ्यास्ततः सेत्स्यन्ति ते क्षणात् // 58 // ततो राजा जवाद् | गत्वोत्सारितशेपदैवतम् / चन्दनादिभिरुद्गन्धि देवालयमचीकरत् // 59 // त्यक्ताऽन्यकृत्यः सोत्कण्ठं तन्मार्ग प्रतिपालयन् / शुचिः | श्रद्धालुरेकाग्रचेतास्तस्थौ नृपस्तदा // 60 // सायं सत्यपि तान् शीर्णरोम्णः पाण्डुच्छवीन् कृशान् / पिशाचानिव निःश्रेण्या पत्या | गर्नादचीकृपत् // 61 // उचे च युष्मानेष्यामि राजानं निकषाऽधुना / भवद्भिस्तत्र तत्पृष्टवक्तव्यं मद्गिरा पुनः // 62 // न चेदरे | | दुरात्मानोऽधुनापि न भविष्यथ / भीतभीतास्ततो मन्दमन्दमेतेऽवदन्निदम् // 63 // त्वदादेशः शिरसि नः संभ्रमं स्वामिनि ! त्यज / / आजन्म तव दासाः सः शिक्षिता इयता न किम् // 64 // साऽथ स्नातान् मृगमदानुलिप्तान् पौष्यशेखरान् / धृतानुपमनेपथ्यान् | तूष्णीकान् सावगुण्ठनात् // 65 // द्वास्थैमुक्तान् पुरादिष्टैर्नीत्वा राजकुले सती / दूरस्थ एव दत्ताघे पालकोत्सारिते नृपे // 66 // देवा // 99 //