________________ श्रीअमम जिनचरित्रम् विशाला // 98 // गमनं राज्ञः भोक्तुं सुलो |चनागृहे गमनम् // 29 // विलोक्य सहसायातं तं हर्षोत्फुल्ललोचना / कृत्वातिथ्यं सती प्रीत्या पुरः पत्युरुपाविशत् // 30 // सौधप्रवृत्तिं तत्पृष्टा सर्वामाख्याय गर्तनात् / तांस्त्रीन् पट्स्वर्णलक्षी च निजोपात्तामदर्शयत् // 31 // सक्प्रभावं तदा श्रुखा प्राप्ताः किं ? त्वां परीक्षितुम् / कामांकुरादयोऽमीषां यद्वा वर्णमियत्कुतः // 32 // तद्वाक्यैः संशयापन्नस्तन्मन्ये नृप एव तान् / इत्थं दत्तधनान् प्रैपीदित्यूहामास | पालकः // 33 // ऊचे सुलोचना गेहे निमन्त्र्य नृपमानय / स्वामिन् येनोत्तरं सर्व घटयामि समञ्जसम् // 34 // पालकोऽपि द्वितीये ऽह्नि प्रातय॑ज्ञपयन्नृपम् / देवः प्रसीदत्वाऽऽयातु भुक्तामद्य मदोकसि // 35 / / कृत्वा क्षेमेण दिग्यात्रा निवृत्तानां महीभुजाम् / इदं हि | सेवकैः कृत्यमतो मां मा निराकृथाः // 36 // नृपोऽब्रवीदध्येऽत्यल्पजीविकोसीति मां कथम् ? / भोजयिष्यस्यऽशक्यं हि नारभन्ते | मनीषिणः // 37 // कल्पद्रुस्त्वत्प्रसादोऽस्ति ममेत्युचिपि पालके / राजा जगाद यद्येवं भोक्ष्ये स्वल्पपरिच्छदः // 38 // भोज्यं सपरिवारेणेत्युपरुद्धोऽमुना भृशम् / तदऽप्यादृतवान्भूपः सदाक्षिण्यं सविस्मयः // 39 // महान् प्रसाद इत्युक्त्वा गृहे गत्वा च पालकः / शशंस सत्यास्तत्सर्व सापि चैवमवोचत // 40 // सज्जितोऽस्ति मया भूपोचितो भोज्यविधिश्चिरात् / करिष्यतेऽधुना कोऽपि नृपं काले तदाह्वयेः // 41 // किन्तु पर्यनुयुंजीत पार्थिवो यद्गृहागतः। आर्यपुत्र ! तदाख्येयं मन्मुखेनैव कारणात् // 42 // प्रपद्येत्यमुना काले विज्ञप्तो गृहमागमत् / तामप्यद्य प्रसंगेन पश्यामीत्यामृशन्नृपः // 43 // तत्राणाविधिव्यग्रां नृपोऽपश्यत्सुलोचनाम् / न प्राग्वद्वहु| मेने तु मित्रव्युग्राहितस्तथा // 44 // भोजयित्वा ततो हृद्यप्राज्यभोज्यानि भूभुजम् / निनाय सपरिवार चमत्कारं महासती // 45 // भुक्तोत्तरं च साश्चयों राजा पप्रच्छ पालकम् / तब कच्चिदसंभाव्या विभूतिरियती कुतः॥४६॥ मदोजनमिदं सौधमिदं चोष्मायित श्रियः। निर्विकल्पं तदाख्याहि तदुत्पत्ति मुदे मम // 47 // स ऊचे देव ! यच्छीलललितेनाऽतिशायिना / मालेयं मम मौलिस्था सर्ग-३ // 98 //