________________ श्रीअमम जिनचरित्रम् दुराचाराद् दुर्दशापतनम् // 9 // | क्षिकीभूते दैवाद्राजकुलेऽखिले / आजूहवल्ललितांगं राज्ञी चेटिकया तया // 79 // देव्या विनोदमुद्दिश्य दास्या सान्तःपुरे युवा / | नवीनयक्षप्रतिमाव्याजात्सायं प्रवेशितः / / 8 / / ललिता ललितांगश्च तावुत्कंठौहठातुरौ / दो गाढं सखजाते मिथो वल्लिद्रुमाविव // 8 // अन्तःपुरे परनरप्रवेशमनुमानतः। | विविदुः सौविदाः क्षमापोऽप्याखेटादाययौ तदा // 82 // भीतैः कंचुकिमिः पार्थ्याऽभयं व्यज्ञापि भूपतिः / एवमन्तःपुरेऽन्यस्य पुंसः | शंकास्ति नः प्रभो // 83 // हित्वा सशब्दे पन्नद्धे राजाऽथ निभृतक्रमः। अन्तःपुरेऽविशच्चौर इवैकाकी सशस्त्रिकः // 84 // दक्षा | दास्यपि राजानं द्वारस्था वीक्ष्य दूरतः / आयान्तं ज्ञापयामास राज्य प्राकृतसंज्ञया // 85|| राज्ञीदास्यौ युवानं तमुत्पाट्योपरि वर्त्मना। गेहावकरवत्तूर्ण भयाचिक्षिपतुर्बहिः // 86 // पश्चाद्भागस्थिते गेहस्याऽपतद्वैष्टकावटे / सोऽस्थाच लीनस्तत्रैव घूकोऽद्रेरिव कोटरे॥ ||87 / / कूपे तत्राशुचिस्थाने दुर्गन्धेन जुगुप्सिते / स तस्थिवान्नरकवत्पूर्वसौख्यान्यनुस्मरन् // 88 // दध्यौ चास्मान्कथश्चिञ्चदशुचेरवटादहम् / निर्यास्यामि तदीदृक्षोदक, विपयैरलम् // 8 // कृपयाऽस्याऽवटे तत्र राज्ञीदास्यौ च नित्यशः / फेलामक्षिपता श्वेव तया | धिर धिर जिजीव सः॥९०॥ आगादऽथाप्टमास्यन्ते वर्षतुर्विश्ववान्धवः। आक्रष्टुमिव तं कोपादुद्भः श्यामाभ्रविभ्रमैः // 91 // || * गर्जितरुर्जितैस्तस्याश्वासनामिव सूत्रयन् / भेत्तुं कूपमिवावर्पद धाराभिमुशलैरिव // 92 // दुर्दिनाडम्बरैर्यत्राऽलक्ष्यरात्रिंदिवक्रमैः / शद्वा द्वैतं जलाद्वैतं धारारावैर्व्यधीयत // 93 // तस्मिन्नुच्छखलैयंढेहप्रश्रवणाम्बुभिः / स कूपः पूरयांचक्रे दुष्टात्मा पातकैरिव // 94 // शब| वत्तैजलैः कूपात कृष्ट्वा निर्वाह्य वैगिभिः / वप्रप्रणालैः स बहिः परिखान्तर्निचिक्षेपे // 95 // तुम्बीफलमिवोल्लाल्य वारिभित्रंगचारिभिः। | स नीतः परिखातीरे तद्घाताा मुमूर्छ च // 9 // कुलदेवतयेवाऽसौ प्राप्तया तत्र देवतः / वीक्ष्योपलक्ष्य संगोप्य धाच्या निन्ये // 10 //