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________________ अथ जैनाचार्य श्रीमाद्विजयधनचन्द्रसूरीश्वर-गुरुगुणाष्टकम् ...am(उपेन्द्रवज्रावृत्ते )ne अनेकधर्माकुलविश्वसिन्धोः, सुरत्नवच्छासनमार्हतं सत् / प्रपद्य योऽभूत्किल विश्ववन्द्यो, नमामि तं श्रीधनचन्द्रमरिम् // 1 // सदा मदाविष्टधियो द्विषोऽपि, सदागमैर्वमितविग्रहं यम् / विलोक्य विम्युविधुतात्मगर्वा, नमामि तं श्री० // 2 // सुखश्रवां कर्मवितानहन्त्री, यदीयवाचं सुनिपीय भव्याः / अमर्त्यलोकं कति संप्रयाता, नमामि तं श्री० // 3 // कुधर्ममार्गे पततां जनानां, शिवाय योऽदात्सुजिनोपदेशम् / कषायदोषोज्झितमार्यवेश, नमामि तं श्री० // 4 // यदीयसौजन्यगुणान्प्रभाते, मुदा सुगायन्ति बुधा हि नित्यम् / नितान्तशान्तं द्विजराजकान्तं, नमामि तं श्री० // 5 // परोपकारार्थमलभविष्णुः, करालकारिकृते च जिष्णुः। बभूव यो वै नितरां सहिष्णु-नमामि तं श्री० // 6 // दयामयः सत्कृतसभ्यवर्गः, समस्तभव्यार्चितपादपमः। रक्ष यो जन्तुगणान्विपत्ते-नमामि तं श्रीधनचन्द्रपरिम् // 7 // यदीयनामस्मरणात्पुनीते, सकिल्विषोऽपि दुतमत्र लोके / परत्र सौख्यं च लघु प्रयाति, नमामि तं श्री० // 8 // दिवामुखे योऽष्टकमेकवारं, पठेन्नरः श्रीधनचन्द्रसूरेः / लमेत नूनं स निजात्मबोध, ब्रवीति हंसो हि हितः समेषाम् // 9 // मुनि हसविजय
SR No.600398
Book TitleSukta Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri, Gulabvijay Upadhyay
PublisherBhupendrasuri Jain Sahitya Samiti
Publication Year1940
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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