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________________ कल्प दीपिका सासताजिन थुणई इणिपरि विनय विजय उवज्झाय मेरे' ए श्लोक आपी नीचे -पं श्री संघविजयगणि शिष्य पं खेमाविजय- गणिना लिखितम् गणिरुपविजयवाचनार्थ आ पंक्तिओ लखेल छे. अने जो ते संघविजयगणि आ ग्रंथकार होय तो जरूर तेमने विस्तीर्ण शिष्यसमुदाय पण होवो जोइए.. अंते आग्रंथने छापवामां अमे जे हस्त लिखित प्रतिनो उपयोग को छे ते प्रतपण ग्रंथरचाया पछी तत्कालिन अतिशुद्ध लखायेल छे जेमां प्रति अंते नीचे प्रमाणे लखेल छे. _ 'संवत १६८३ वैशाखसुदि ७ गुरुवासरे लिखितं, महिसाणापुरे लेखकपाठकयोः शुभं भवतु, श्रीमहिसाणकनगर वास्तव्य श्रीमालीज्ञातीय वृद्धशाखीय श्रेष्ठिनाकरभार्या बाइनारंगदेसुतश्रेष्ठि पुजाख्येन सवृत्तिकल्पसूत्रप्रति लिखापिता स्वश्रेयसे' ___ आ प्रत एटली बवी व्यवस्थित सुंदररीते संशोधन पूर्वक लखायेल होइ अमाराकार्यने घणी सुगमता करी आपेल छ प्रति उपर 'हस्तिविजय' ए प्रमाणे नाम लखेल छे. . एज मफतलाल झवेरचंद गांधी अमारा तरफथी तुर्त बहार पडेल नवीन ग्रंथो हाल छपाता ग्रथो सप्तव्यसन कथा समुच्चय-१६ फानो सरळ | भविष्यदत्त चरित्र [कर्ता उपाध्यायमेघविजयगणि] अप्रसिद्ध श्लोकबद्ध किं. २-०-० सरळ श्लोकबद्ध कल्पदीपिका-कल्पसूत्र उपरनी ३२ फर्मानी सरळ त्रैलोक्यप्रकाश [कर्ता हेमचन्द्रसूरि] फळादेशनो अपूर्व अप्रसिद्ध टीका किं. ३-८-० ज्योतिष ग्रंथ. .
SR No.600393
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMafatlal Zaverchand Gandhi
PublisherMukti Vimal Jain Granthmala
Publication Year1935
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size31 MB
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