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गच्छा चार
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दारिदं रोगसोगसंतावा । परवसभावो गुत्तीइ, ठाणमिय नरयचिन्हाई ॥५६॥ मुमिणविसंवायाओ, तबयणमसवयं वियाणित्ता । मोडेऊणं वयणं, ते लहु देवी विसज्जेइ ॥ ५७॥ रन्ना अनियपुत्ता-परिओ हक्कारिऊण अहपुट्ठो । जहठियनरयसरूवं, तेसिं पुरओ परूवेइ ॥ ५८ ॥ देवी भणेइ भयवं, ममं व तुम्हेहि सुविणमझमि । किं नरयाण सरूवं, सयलपि पलोइयं एयं ॥ ५९॥ मूरीवि भणइ भद्दे ! सुविणेण विणावि जिणवरागमओ । जाणिज्जइ अम्हेहिं, लोयसरुवं असेसंपि ॥ ६०॥ तो निवजाया पुच्छइ, भयवं विहिएण केण कम्मेण । जीवा पावंति इमाणि, नरयदुक्खाणि तिक्खाणि॥६१॥ अन्नियपुत्तो साहइ, कुणिमाहारे सया पवत्ताणं । महरंभमहपरिग्गह-पसत्तचित्ताण सत्ताणं ॥ ६२॥ पंचिंदियघाईणं, गुरुपडिणीयाण रुद्दझाणीणं । नरए हवेइ पडणं, उल्लालियदंडनाएण ॥ ६३ ॥ इय कहिऊणं अनिय-पुत्तायरिया गया नियं ठाणं । जणणी देवो वि तओ, तीसे दंसेइ सग्गाई ॥ ६४ ॥ तत्थ य तियसा मणिमय-विमाणमालानिवाससुहसहिया । अमरतरुनियरपूरिय-समीहियस्था अइपसत्था ॥६५॥ कुंडलतिरीडहार-पमुहाहरणेहि भूसियसरीरा । नियकंतकंतिपूरेहि, पूरियासेसदिसिविदिसा ॥ ६६॥ अरयंबरवत्थधरा, अणमिसनलिणोवमाणनयणजुया । अमिलाणपुप्फमालाघोलिरगलकंदला सययं ॥ ६७॥ देवंगणागणेहि, सह विसयमुह सया समाणता । बहुविहजलाइकीला-पसत्तचित्ता दुहच्चचा ॥ ६८ ॥ गामसरताणमुच्छण-मुच्छियवरगीयसवणनिहुअमणा । ताललयमाणरम्मं, नट्टारंभ पलोयंता ॥ ६९ ॥ सयलजणलोललोला-कोडीहिं पि हुन पनि सक्कं । ईसरियमणुहवंता, चिट्ठति पगिट्ठिमया ॥ ७० ॥छहि कुलयं ॥ इय पिक्खिऊण सुमिणे, देवसरूवं सकोउगा देवी । पडिबुज्झिऊण पइणो, जहडिअं कहइ वुत्ततं ॥ ७१॥ गोसे तोसेण निवो,
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