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________________ विहिणो अविनाण, पयडणं सहलयं होइ ॥ ८ ॥ अहमवि विरहं एयाण - मक्खमो पिक्खिउँ मणागंवि । तणयतणयाण पाणिगहणमओ कारवेमि लहुं ॥ ९ ॥ तो मंतिषमुहनायर - कोर सद्दाविडं निवो भणइ | अंतेरंभि रयणं, उत्पज्जइ तस्स को सामी ॥ १० ॥ ते वि हु भणति सामिय ! सयलम्मि वि मंडलम्मि जं रयणं । उप्पज्जइ तस्स पहू, निवो किमंतेउरगयस्स ॥ ११ ॥ नियदेसे जं रयणं, जायइ जणउ व तं जहिच्छाए । विणिवेसंतो सययं, वारिज्जइ केण धरणिधरो ॥ १२ ॥ इय तच्चयणछलेणं, छलप्पहाणो नरेसरो हिट्ठो । लोयसमक्खं नियदारगाण कारेह करगहणं ॥ १३ ॥ पुप्फबई तब्भज्जा, सावयधम्मुज्जुया अकज्जाओ । वारंती वि न गणिया, भूवइणा कुग्गहग्गहिणा ॥ १४ ॥ सिरिपुप्फचूलकुमरी, विसयहं तीइ पुष्पचूलाए । सद्धिं अणुहवमाणो, गमेइ कालं निमेसु च ॥ १५ ॥ कमसो अकित्तिकद्दम-मलिणे निवपुप्फकेयमि मए । सिरिपुप्फचूलराया, पालइ नीईइ महिवलयं ॥ १६ ॥ तइया अकज्जकरणा-वसरे पइणाऽवमाणिया संती । पुप्फवई निवेया, पडिवन्ना जिणवरचरित्तं ॥ १७ ॥ मिरवज्जं पवज्र्जं, पालिय खालियपमायमलपडला ! सा मरिकणं सुहझाण-संगया दिवि सुरो जाओ ॥ १८ ॥ ओहिं जाव पउंजइ, सो तियसो ताव सोयरेण समं । पिक्खे वि पुप्फचूल, भोगपरं चितिउं लग्गो || १९ ॥ मम आसी पुचभवे, पाणाउ वि वल्लहा सुया एसा । वा तह करेमि अडुणा, जेण न नरए फुडं पडइ ॥ २० ॥ इय चिंतिय पडिबोहण - विहियमई पुप्फबइवरो अमरो । निसिसुताए बीए, नरदुहे सए एवं ॥ २१ ॥ साहाविय तिसु उन्हा, मीस चउत्थी इसीय उवरि तिगे । परमाहम्मिय अन्नुन्नुदीरणा वेणा तत्थ ॥ २२ ॥ अइसकडमुहघडियालया असुरेहि कडुरडंतसरा । कट्टिजंति हु केई, जंताओ लोहंतंतु व CATE
SR No.600392
Book TitleSatik Gacchachar Prakirnak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya, Danvijya Gani
PublisherDayavijay Granthmala
Publication Year1924
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gacchachar
File Size25 MB
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