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________________ अन्थविषय आ ग्रन्थमां श्रीमद् ज्ञानविमळसूरिजीए हेय अने आदेय आ बे तत्वो उपर खुवज विस्तीर्णपणे प्रतिपादन कयु छे. पांच आश्रव हेय छे, अने पांच संवर आदेय छे. आ हेव अने आदेयरूप पांच माश्रव भने संवस्नी उत्पत्तिना कारणो तेनो प्रभाव फळ अमे असर विगैरेन खुब महत्वपूर्ण विवेचन के. साथे साथे जैनदर्शन अने जैनेतरवर्शनोना अनेक अवतरणो मूकी प्रथने खुबज सुस्पष्ट कयों छे. ग्रंथपकाशन अंगे आजथी प्रण वर्ष पहेला परमपूज्य गुरुवर्य कवि दिवाकर पंन्यास श्रीमद् रंगविमळजी गणिवरे सूरिपुंगव श्रीमद् आचार्यश्री ज्ञानविमळसूरीश्वरजी रचितवृत्ति ज्यारे अमदावादमां देवशाना पाडामां विमळना उपाश्रयमा प. पू. पं. दयाविमळजी महाराजना भंडारमा जोइ त्यारथी तेओर्नु दील आवी अपूर्व कृति जरुर प्रसिद्ध कराय तो सारं ए निर्णय साथे प्रसिद्ध करवानू शरु कयु. दैवयोगे एज भंडारमाथी परमपूज्य पं. मुक्तिविमळजी गणिवरना हाथे तैयार करायेल बीजी प्रति पण मळी आवी. आयी प्रकाशित थता आ ग्रंथ प्रत्ये वधारे आदर थयो. आ प्रतिमा प्रकाशनमा मुख्यत्वे वे प्रतिमोनो उपयोग करवामां आव्यो छे. एक डहेलाना उपाश्रयनी प्रतिनो अने बीजी देवशाना पाडामा बिमळगम्ना उपाश्रयमा प.पू.पं. श्री दयाविमळजी महाराजना भंडारनी प्रतिनो जो के प्रकाशननी दृष्टिए बन्ने प्रतिओमां एके प्रति शुद्ध नथी, छतां डहेलना उपासवनी प्रति अक्षरे सारी अने जुनी छे. मने के प्रतिने अनुलक्षीने ज मूख्यत्वे आग्रंथर्नु प्रकाशन थयु हे. उक्त सूरीश्वरजीनी कृतिओनो
SR No.600391
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanvimalsuri, Mafatlal Zaverchand Pt
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1939
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size24 MB
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