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जोगा य समाहीहिं साहुजुगकिरियफलकरणा ॥७॥ पढमकरणभेएणं गंथासनस्स धम्ममित्तफला । सा हुज्जुगाइभावो जायइश्रावक धर्म काप्रकरणेल तह नाणुबंधुत्ति ॥ ८॥ भवठिइभंगो एसो तह य महापहविसोहणो परमो । नियविरियसमुल्लासो जायइ संपत्तबीयस्स ॥९॥
विंशिका ९ संलग्गमाणसमओ धम्मट्ठाणंपि विति समयण्णू । अवगारिणोऽवि इत्थट्ठसाहणाओ य सम्मति ॥ १०॥ पंचट्ठसव्वमेओवयार॥१०॥
जुत्ता य होइ एसत्ति । जिणचउवीसाजोगोवयारसंपत्तिरूवा य ॥११॥ सुद्धं चेव निमित्तं दव्वं भावेण सोहियव्वंति । इय एगंतविसुद्धो जायइ एसा तहिट्ठफला ॥ १२॥ सयकारियाइ एसा जायइ ठवणाइ बहुफला केई । गुरुकारियाइ अन्ने विसिट्ठविहिकारियाए य ॥ १३ ॥ थंडिल्लेवि य एसा मणठवणाए पसत्थिगा चेव । आगासगोमयाईहिं इत्थमुल्लवणाइ हियं ॥ १४ ॥ उवयारंगा इह सोवओगसाहारणाण इट्ठफला । किंचि विसेसेण तओ सव्वे ते विभइयवत्ति ॥१५॥ एवं कुणमाणाणं एया दुरियक्खओ इहं जम्मो। परलोगम्मि य गोरवभोगा परमं च निव्वाणं ॥ १६ ॥ इकपि उदगबिंदू जह पक्खित्तं महासमुद्दम्मि । जायइ अक्खयमेयं पूर्यावि जिणसु विनया ॥ १७॥ अक्खयभावे भावो मिलिओ तब्भावसाहगो नियमा।न हु तंब रसविद्धं पुणोवि तंबत्तणमुवेइ ॥ १८ ॥ तम्हा जिणाण पूया बुहेण सब्वायरेण कायव्वा । परमं तरंडमेसा जम्हा संसारजलहिम्मि॥ १९॥ एवमिह दव्यपूया लेमुद्देसण दतिया समया। इयरा जईण पाओ जोगहिगारे तयं वुच्छं ॥२०॥ इति पूजाविधिविंशिका ८
धम्मोवग्गहदाणाइसंगओ सावगो परो होइ । भावेण सुद्धचित्तो निच्चं जिणवयणसवणरई ॥१॥ मग्गणुसारी सड्ढो पन्नवणिज्जो कियापरो चेष । गुणरागी सक्कारंभसंगओ देसचारित्ती ॥२॥ पंच य अणुव्वयाई गुणव्वयाई च हुंति तिनव । सिक्खावयाई चउरो सावगधम्मो दुवालसहा ॥ ३ ॥ एसो य सुप्पसिद्धो सहाइयारेहिं इत्थ तंतम्मि । कुसलपरिणामरूवो नवरं सइ अंतरो नेओ
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