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________________ श्रीविंशतिकाप्रकरणे ॥२॥ इहपरलोगेसु भयं जेण न संजायए कयाइयवि । जीवाणं तकारी जो सो दाया उ एयस्स ॥ १०॥ इय देसओवि दाया इमस्स है। पूजाएयारिसो तहिं विसए। इहरा दिन्नुद्दालणपायं एयस्स दाणंति ॥ ११॥ नाणदयाण खतीविरईकिरियाइ तं तओ देह । अनोविशिका ८ दरिद्दपडिसहवयणतुल्लो भवे दाया ॥ १२ ॥ एवमिहेयं पवरं सव्वेसिं चेव होइ दाणाणं। इत्तो उ निओगेणं एयस्सवि ईसरो दाया |॥ १३ ॥ इय धम्मुवग्गहकरं दाणं असणाइगोयरं तं च । पत्थमिव अन्नकाले अरोगिणो उत्तम नेयं ॥ १४ ॥ सद्धासकारजुयं सकमेण तहोचियम्मि कालाम्म । अन्नाणुवघाएणं वयणा एवं सुपरिसुद्धं ॥१५॥ गुरुणाऽणुमायभरो नाओवज्जियधणो य | एयस्स । दाया अदुत्थपरियणवग्गो सम्मं दयालू य ॥ १६ ॥ अणुकंपादाणंपि य अणुकंपागोयरेसु सत्तेसु । जायइ धम्मोवग्गह| हेऊ करुणापहाणस्स ॥१७॥ ता एयपि पसत्थं तित्थयरेणावि भयवया गिहिणा । सयमाइन्नं दियदेवदूसदाणेणऽगिहिणावि ॥१८॥ धम्मस्साइपयमिणं जम्हा सलं इमस्स पज्जते । तबिरयस्सावि जओ नियमा सनिवेयणा गुरुणो ॥ १९ ॥ तम्हा सत्तऽणुरूवं | अणुकंपासंगएण भव्वेणं । अणुचिट्ठियब्वमेयं इत्तोच्चिय सेसगुणसिद्धी ॥ २० ॥ इति दानविंशिका सप्तमी । पूया देवस्स दुहा विनया दव्वभावभेएणं । इयरेयरजुत्ताविह तत्तेण पहाणगुणभावा ॥१॥ पढम गिहिणो सावि य तहा तहा भावभेयओ तिविहा । कायवयमणविसुद्धी सम्भूओगरणपरिभेया ॥२॥ सव्वगुणाहिगविसया नियमुत्तमवत्थुदाणपरिओसा । | कायकिरियापहाणा समंतभद्दा पढमपूया ॥३॥ बीया उ सब्वमंगलनामा वायकिरियापहाणेसा । पुन्बुत्तविसयवत्थुसु ओचित्ताण-| | यणभेएण ॥ ४ ॥ तइया परतत्तगया सव्वुत्तमवत्थुमाणसनिओगा। सुद्धमणजोगसारा विनेया सव्वसिद्धिफला ॥५॥ पढमाबंधकजोगा सम्मदिहिस्स होइ पढमत्ति । इयरेयरजोगेणं उत्तरगुणधारिणो नेया ॥ ६ ॥ तइया तइयाबंधकजोगेणं परमसावगस्सेवं ।
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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