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________________ श्री यशोदेवीये प्रत्या ख्यान स्वरूपे ॥ २३ ॥ परलिंगिनिण्हए व सम्मसणजढे उ उवसंते । तदिवसमेव इच्छा सम्मत्तजुए समा तिन्नि || २७१ || मुक्कवओ पुण दुविहो सारूवी होइ तह गिहत्थो य । तत्थ य रयहरणवज्जिय जइवेसधरो उ सारूवी ॥ २७२ ॥ किंच- मुंडसिरो सियवत्था स भज्जऽभज्जो व मुक्ककच्छो य । पत्तेहि भमइ भिक्खं अबंभयारी य सारूवी ॥ २७३॥ सो जाजीव गुरुणो तेण य मुंडीकयाणिवि तहेव । तेणेव बोहियाणं अमुंडियाणं पुणो इच्छा || २७४ || अणवच्चे सेसविही पुत्र्वायरियस्स तस्सऽवच्चाइ । आभव्वाइं नियमा मुंडिय इयराई नऽन्नस्स ।। २७५ || जो पुण गिहत्थमुंडो अहव अमुंडो उ तिन्ह वरिसाण । आरेण पव्वावे सयं च पुब्वायरिय सव्वे ॥ २७६ ।। भरहस्स पुव्वजम्मो आहरणं होइ साहुणो दाणे । गिहिणो घणसत्थवइदिहंतो जुन्नसेट्ठी वा ॥ २७७ ॥ हरिण वणछेइणो वा अहवा गामस्स चिंतगो पुरिसो । कउन्नसालि भद्दा दाणफले अहव दिट्ठता ॥ २७८ ॥ भरणं पुत्र्वभवे वेयावच्चं कथं सुविहियाणं । तो तस्स पभावेणं जाओ भरहाहिवो राया ॥ २७९ ॥ लद्धूण केवलसिरिं लक्खं पुत्रवाण संजमं काउं । नीसेसकम्ममुको भरहरिसी सिवपय पत्तो ॥ २८० ॥ दाणेण मुणिवराणं धणोवि कल्लाणभायणं होउं । तेलुकनमियचलणो जुगाइदेवो जिणो जाओ || २८१ ॥ आह कह जुन्नसेट्ठीदितो अत्थादिन्नदाणोवि ? | दिन्नं चिय भावेणं सोच्चिय जं उत्तमो एत्थ || २८२ || अविय तस्सेरिसपरिणामो जेण तया केवलंपि पावितो । जिणपारणवृत्तंतं जइ न सुर्णेतो स्वर्ण एकं ।। २८३ ।। एत्तोच्चिय नवसेट्ठी जिणस्स वीरस्स लोगनाहस्स । जाइच्छियदाणेणं न भायणं सग्गमोक्खाणं ॥ २८४ ॥ अह पडिया तस्स गिहे वसुहारा तेण भावहीणंपि । दाणं तस्सवि सहलं (आचा० ) किं इमिणा एग दाने दिग्विधिः ॥ २३ ॥
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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