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________________ पशोदेवीये प्रत्याख्यान स्वरूपे पारणक विधिः स्वयंपालना ॥२१॥ बहुंपि काउ समायं । धम्मं कहं नु कुज्ज संजमगाहं च नियमणं ॥२४०॥ देति तओ अणुसटिं संविग्गो अप्पणा उ जीवस्स । रागहोसाभावं परमरहस्सं गणेमाणो ॥२४१बायालीसेसणसंकडम्मि गहणम्मि जीव ! नऽसि छलिओ। इहिं जह न छलिज्जसि भुंजंतो रागदोसेहिं ॥२४२।। रागहोसविरहिया वणलेवाइउवमाए भुंजंति । कड़ेत्तु नमोकारं विहीए गुरुणा अणुन्नाया ॥ २४३ ॥ रागेण सइंगालं दोसेण सधूमगं मुणेयव्वं रागद्दोसविरहिया भुजति जई उ परमत्थो ॥२४४॥ जइभागगया मत्ता रागाईणं तहा चओ कम्मे । रागाइविहुरयाविय पायं वत्थूण विहुरत्ता ॥२४५।। नियमेण भावणाओ विवक्खभूयाउ सुप्पउत्ताओ। होइ खओ दोसाणं रागाईणं विसुद्धाओ ।।२४६।। जे वन्नाइनिमित्तं एत्तो आलंबणेण वऽन्नेण। भुंजंति तेसिंबंधो नेओतप्पच्चओ तिव्वो ॥२४७॥ भणिओपारणगविही पच्चक्खाणस्स पुव्वमुणिसिहो। एत्तो य समासेणं वोच्छ सयपालणादारं ॥२४८॥ आह जह जीवघाए पच्चक्खाए न कारए अन्नं । भंगभयाऽसणदाणे धुवकारवणंति नणु दोसो॥२४९ ततश्च-नो कयपच्चक्वाणो आयरियाईण देज्ज असणाई । न य विरइपालणाओ वेयावच्चं पहाणयरं ॥२५०॥ यतः- दाणमोरभिएणावि,चंडालेणवि दीया। जेण वा तेण वासीलं, न सकमभिरक्खि ॥सीलं च चिरतिः।।२५१॥अत्रोत्तरम्-नो तिविहंतिविहेणं पच्चक्खाणन्नदाणकारवणं । सुद्धस्स तओ मुणिणो न होइ तभंगहेउत्ति ॥२५२॥ सयमेवष्णुपालणियं दाणुवएसा यह पडिसिद्धा। ता दिज्ज उवदिसेज्ज व जहासमाहीए अन्नेसिं ॥२५३।। कयपच्चक्वाणोवि य आयरियगिलाणबालवुड्डाणं । दज्जासणाइ संत लाहे कयवीरियायारो ॥२५४|| संविग्गअन्नसंभोइयाण दंसेज्ज सगकुलाणि । अतरंतो वा संभोइयाण जह वा समाहीए ॥२५५।। एवमिह सावगाणं दाणुवएसाइ संगयं चेव । पाणासणाइविसयं अविसेसेणं जइ ॥२१॥
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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