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________________ श्रीविशेषण वत्यां ॥१४॥ तइयाए ठवणाए पढमबीयाण संभवो णियमा । एमेवारूवणाए पढमयविइयाहिं किं कज्ज? ॥ १५१ ॥ चरिमाए वा तिहंपि | संभवो तेहवि बोहणत्थं च । सुहगहणत्थं च तहा चरिमाए तदभिहाणंपि ॥ १५२ ॥४४॥ (नन्दी. १३४) केई भणंति जुगवं जाणइ पासइ य केवली नियमा । अण्णे एगंतरिअं इच्छंति सुओवएसेणं ॥१५३।। अण्णे ण चेव वीसुं दंसणमिच्छति जिणवरिंदस्स । जं चिय केवलणाणं तं चिय से दरिसणं विति ॥ १५४ ॥ जह किर खीणावरणे देसणाणाण संभवो ण जिणे । उभयावरणाईए तह केवलदसणस्सावि ॥ १५५ ॥ देसण्णाणोवरमे जह केवलणाणसंभवो भणिओ। देसइंसणविगमे तह केवलदसणं होउ ॥ १५६ ॥ अह देसणाणदंसणविगमे तुह केवलं मयं णाणं। ण मयं केवलदंसणमिच्छामित्तं णणु तवेयं ॥१५७॥ देसण्णाणाभावो ह य कसिणविसयलिंगलिंगित्ता । जुत्तं जिणम्मि एयं ण उ केवलदसणाभावो ॥१५८॥ अहवा ण चेव देसण्णाणाभावो जिणम्मि, किं कज्जं?। जाणाइ जिणवरिंदो तेसि विसए अपरिसेसे ॥१५९॥ तहविय न पंचणाणी भण्णइ समयम्मि मा हु होज्जाहि । केवलणाणाकसिणप्पसंगदोसो जिणिंदस्स ॥१६०॥ पुण्णे महातलाए णत्थि पभृतं (पुहुत्त) तदंतवत्तीणं । जह सेसतलागाणं जिणम्मि तह सेसणाणाई ॥१६१।। अहवा जह संताणवि गहताराईण दिनकरन्भुदए। न पुहुत्तमेवमण्णण्णाणाणं केवलब्भुदए। ॥१६२॥ अहवा खओवसमियत्तणेण छउमत्थभाववत्तीणि । केवलणाणं खइयं जेण जिणे संभवो तस्स ॥१६३॥ केवलदसणमेव (उ) छउमत्थे णत्थि तं जओ खइयं । जइ तं णस्थि जिणम्मिवि तो कत्थ तयं गहेअव्वं ? ॥१६४ ॥ छउमत्थम्मि जिणम्मिवि नत्थी १ भवणाए. २ सम्भावो. ३ मइबोह. ४ भावा. ५ जाणइ जेण जिणिंदो. ६ असेसेऽपि. ७ वत्थीणं. ॥ १४ ॥
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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