SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विशु अथवा सहिदंजन मितिमा नीनिक मल मनुसूयने पारमार्थिक व्यावहारिकस है ल सरापेचा निर्वचनी वेरायनइति नानुभवनि न.टी. रोषइत्याह अपि चेत्यादिनाम महिलायो भानियाधानुभवविरोधी पनि विरोधपरिहत्य वाधविरोध ८५ परिहरनि ने चने मिनि नेदंजन मिनि कोर्थ : नगदभिमत जनमिति तथाचार्थ किया मामल सणस व खेव निषेधात् न नहैलोपानुमानविरुण हो त्यर्थः सदस हैल होएयम निर्वचनीयत्त्वमत्रेत निर्वाहावसरत याचपूवैदिन लौकिक परमा शेर जनविषयत्वनिषेपेनन विप्रतिषेधशे कापीति भावदोषानर मुके परिहरति नचा निर्वापर निरंजनानुभव संस्कार नायविचार जन ज्ञानाकार विवर्तते अननुभूतरजनस्यश्री पत्तेः सचानुभवः सविकल्पक इतिशब्द थाचन संस्कार र अधिचत्र हाणीव पारमार्थिक सत्तायाः प्रयेचवच व्यवहारिक सत्तायाः अभावेपिप्रानिभा सिकसत्ता स्वीकारेपण मदिरन्जन मिन्यनुभवोन विरुडानेन चने हे रजनमित्य सत्त्वानुभव विरोधोऽर्थक्रिया सामर्थाील सणस च से वननिषिध्यमानत्वात् नचा निवायैरजन शब्दप्रयोगायोगः सविकल्पक रजनानुभव से स्कारजन्यतयास्जत महाचक शब्द लेखेोपपत्तेः न चा निर्वचनीयत्तेरजतस्यप्रतीत्यनुपपनिःशुल्पव स्थाविद्या विवर्तन या चैतन्येऽभ्यस्तल्वाजेन प्रनीन्युपपत्तेः नच प्रयोगाभावादपरो नादियान डक्तिच्छब्दप्रयोगेपि हेतुः एतदुकं भवति रजबुद्धिवइजनजा नीयवुहिर देति नूनश्चत चन्द प्रयोग निपरस्यापिशुन्यादौर जन लजात्याद्यसंभवान्संस्कार एवशर नभावः योनुप्र न्याय का नु पे पन्यानीत्यनुपपतिरुक्ता ता परिहरति नचानिर्वचनीयेति शुन्यवच्छिन्नयचैतन्यदेविद्यापरिणामो हिरजनन नुकेवलशुन्य विद्यापरिणामः शुक्केर विद्या का ध्यस्य स्वकारणा विद्याप्रन्याला योगात नटुक्तमाचापैरिस सिद्धिकारः शुक्ताव स्यान्म मोहोन्यारूपधीः शुक्ति मोहजाकथ्यते मुदवस्यात्म जानो मुजायथा घरनिततस्तेने वे चनन्पेनरजनमपिवेद्ये मित्यर्थः ॥ चितन्य अध्यक्षस्था सन्चान् ॥
SR No.600389
Book TitleTattvapradipika Nayanprasadini Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitsukhmuni, Pratyayaswarupmuni, Nirmaloddhavsinh
PublisherNirmaloddhavsinh
Publication Year
Total Pages692
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size55 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy