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________________ अनगार अर्थात् धर्म व्यासङ्गसे यदि चतुर्दशीकी क्रिया न की जासकी हो तो पूर्णमासीको पाक्षिकी क्रिया करना चाहिये। अष्टमीकी और पक्षान्तकी क्रियाविधिको तथा सर्वत्र चारित्रभक्तिके अनन्तर होनेवाली आलोचनावि. पिको बताते हैं: स्यात् सिद्धश्रुतचारित्रशान्तिभक्त्याष्टमीक्रिया । पक्षान्ते साऽश्रुता वृत्तं स्तुत्वालाच्यं यथायथम् ॥ १७ ॥ सिद्धमक्ति श्रुतमक्ति चारित्रमक्ति और शांतिमाकै इन चार भाक्तियों के द्वारा अष्टमीक्रिया की जाती है। पाक्षिकी क्रिया इनमेसे श्रुतभाक्त के सिवाय बाकी तीन मक्ति के द्वारा हुआ करती है। तथा साधुओंको उचित है कि सभी जगह चारित्रमाक्तिके अनन्तर यथायोग्य आलोचना किया करें । चारित्रसारमें भी अष्टमीको सिद्ध श्रुत चारित्र शान्तिमतिका करना और पाक्षिकी क्रिया करने में विद्ध चारिश शान्तिमतिका करना ही बताया है। किंतु संस्कृत क्रियाकाण्डमें यह जो पाठ दिया है कि: सिद्धश्रुतसुचारित्रचैत्यपनगुरुस्तुतिः । शान्तिमक्तिश्च षष्ठीयं क्रिया स्यादष्टमीतियौ ॥ सिद्धचारित्रत्येषु भक्तिः पञ्चगुरुष्वपि ॥ शान्तिभक्तिश्च पक्षान्ते जिने तीर्थे च जन्मनि ॥ अष्टमीको सिद्धश्रुत चरित्र चैत्य पंचगुरुकी भाक्त और छही शांतिभक्ति करनी चाहिये । तथा अमावस्या पूर्णिमा और तीर्थकर भगवान् के जन्म कल्याणके समय सिद्ध चारित्र चैत्य पंचगुरु शान्तिमाक्त करनी चाहिये । सो इसमें नित्यदेववन्दनाके साथ २ अष्टमी चतुर्दशीका विधान बताया है । अत एव यह वृद्धसम्प्रदाय समझना चाहिये। १- अष्टमीक्रिया में जो चार भक्ति होती हैं उनमेंसे पाक्षिकी क्रिया श्रुतभक्ति नहीं होती। मपाय SOME ect
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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