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________________ अनगार ये योग और प्रतिक्रमण निर्दिष्ट समयसे कचित् कदाचित् भिन्न समयमें भी किये जा सकते हैं। फिर भी किसी विशिष्ट धर्म कार्यमें रुकजानेपर ही साधुओंको ये मिन्न समयमें करने उचित हैं, सर्वदा वैसा करना योग्य नहीं है । इस प्रकार नित्य क्रियाओंके करनेकी विधिका वर्णन किया । अब क्रमानुसार नैमितिक क्रियाओंके वर्णनका अवसर प्राप्त है। अत एव नैमित्तिक क्रियाओं में से सबसे पहले चतुर्दशीको करने योग्य क्रियाकी विधि दो मतोंके अनुसार बताते हैं: - त्रिसमयवन्दने भक्तिद्वयमध्ये श्रुतनुति चतुर्दश्याम् । प्राहुस्तद्भक्तित्रयमुखान्तयोः केऽपि सिद्धशान्तिनुती ॥४५॥ क्रियाकाण्डके निरूपण करजेवाले प्राकृत चारित्रसारके मतानुमार जो वन्दना भक्ति आदि करने का विधान । करते हैं उन आचार्योंका कहना है कि प्रातःकाल मध्याह्न और सायंकाल इन तीनों समयों में नित्य देववंदना । के अवसर पर जो दो भक्ति-चैत्यभाक्त और पंचगुरुभक्ति की जाती हैं उनके मध्यमें चतुर्दशी के दिन श्रुतभक्ति और करनी चाहिये । जैसा कि क्रियाकाण्डमें भी बताया गया है। यथा: .."जिणदेववन्दणाए चेदियभत्तीय पंचगुरूभत्ती । चउदसियं तं मन्झे सुदभत्ती होइ कायव्वा ॥ जिनदेवकी नित्यवंदना करनेमें चैत्यभक्ति और पंचगुरुभक्ति की जाती है। किंतु चतुर्दशीको इन दोनों भक्तियोंके मध्यमें श्रुतभक्ति और करनी चाहिये । चारित्रसारमें भी कहा है कि "देवकी प्रतिदिनकी स्तवन क्रिया करने में चैत्यभक्ति और पंचगुरुभक्ति तथा चतुर्दशी के दिन इन दोनों भाक्तयोंके मध्य में श्रुतमक्ति हुआ करती है। संस्कृत चारित्रसारके मतानुसार जो क्रियाकाण्डका निरूपण करने वाले हैं उन आचार्यों का कहना है कि चतुर्दशीके दिन उपर्युक्त तीनों भक्तियों-चैत्यभक्ति श्रुतभक्ति और पंचगुरुभक्ति के आदिमें और अंतमें क्रमसे सिद्धभक्ति और शांतिभाक्ति करनी चाहिये । जैसा कि संस्कृत क्रियाकाण्डके पाठमें कहागया है कि:- , बन्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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