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________________ अनगार कायिक प्रणाम भी पांच तरहका माना है । जिसमें शरीरका एक अंग नम्रीभूत हो उसको एकाङ्ग, और जिसमें दो अंग नम्रीभूत हों उसको द्वयङ्ग, और जिसमें तीन चार पांच अंग नम्रीभूत कियेजांय उसको क्रमसे व्यंग चतुरंग पंचांग कायिक प्रणाम कहते हैं। एकाङ्ग प्रणाममें केवल शिरको ही नमाया जाता है । द्वयनमें दोनों हाथ जोडकर नम्रीभूत किये जाते हैं। ध्यंगमें दोनों हाथ और शिर नत हुआ करता है । चतुरङ्गमे दोनों हाथ और दोनों घुटने नत किये जाते है । और पंचाग में मस्तक दोनों हाथ और दोनों घुटने नम्र करने चाहिये कृतिकर्म करने वालोंको इन पांच प्रकारके प्रणामों से जो प्रणाम जिस स्थानपर करना उचित है उसको उसी स्थानपर करना चाहिये । जैसे कि सामायिक दण्डक की आदिमें पंचाङ्ग प्रणाम करना चाहिये । कहा मी.है कि: मनसा वचसा तन्वा कुरुते कीर्तनं मुनिः । जानादीनां जिनेन्द्रस्य प्रणामस्त्रिविधो मतः ॥ एकाको नमने मूों द्वयङ्गः स्यात् करयोरपि । व्यङः करशिरोनामे प्रणामः कथितो जिनैः ।। करजानुविनामेऽसौ चतुरको मनीषिभिः । करजानुशिरोनामे पश्चाङ्गः परिकीर्तितः ॥ प्रणाम कायिको ज्ञात्वा पश्चधेति मुमुक्षुभिः । विधातव्यो यथास्थानं जिनसिद्धादिवन्दने । अर्थात-मुनिजन जिनेन्द्र के ज्ञानादिका मन वचन और कायसे कीर्तन किया करते हैं । अतएव त्रियोग की अपेक्षा प्रणाम तीन प्रकारका है। जिसमें कायिक प्रणाम पांच तरहका है। शिरके नमानेपर एकाङ्ग, दोनों हाथों के नमानेपर द्वयङ्ग, दोनों हाथ और शिरके नमानेपर ध्यग, दोनों हाथ और दोनों जानुओंके नमानेपर चतुरंग, और दोनें। हाथ दोनों जानु तथा एक शिरके नमानेपर पंचाङ्ग प्रणाम कहा जाता है। इन पांच प्रकार के प्रणाों से अन्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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