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________________ जनगार जब सुलोचनके पुत्र सहस्रनयनके द्वारा सुलोचनको मारनेवाला अपना पिता पूणर्घन मारा गया तब उसकी सेनाके द्वारा भगाया गया मेघवाहन समवसरणमें स्थित द्वितीय तीर्थकर श्री अजितनाथ भगवान् सर्वज्ञ देवकी शरणमें जाकर उपस्थित हुआ। वहांपर पूर्णघनके चरभीम नामके राक्षसेन्द्रने पूर्वजन्मके पुत्रकी प्रीतिके वश होकर उसको नवग्रह नामका हार लङ्का और लङ्कोदर नामके दो नगर एवं कामग नामक विमान प्रभृति विभूतिके साथ २ राक्षसी नामकी महाविद्या देकर राक्षस वंशका आदिपुरुष बना दिया। इसलिये कहना पडता है कि सुखसंपादन या दुःखोच्छेदनरूप ऐसा कौनसा कार्य है कि जिसमें धर्म व्याप्त न होता हो। अर्थात् सुखप्राप्ति या दुःखविनाश सभी कार्य ऐसे हैं कि जो धर्मकी सहायतासे ही सिद्ध हुआ करते हैं। कोई भी कार्य धर्मकी सहायताके विना सिद्ध नहीं हो सकता। तीसरा उदाहरण रामचंद्रजीका देते हैंराज्यश्रीविमुखीकृतोऽनुजहतैः काल हरस्त्वक्फलैः, संयोगं प्रियया दशास्यहतया स्वप्नेप्यसंभावयन् .. क्लिष्टः शोकविषार्चिषा हनुमता: तद्वार्तयोजीवितो, . रामः कीगबलेन यत्तमवधीत् तत्पुण्यावस्फूर्जितम् ॥ ५३॥ रामचंद्र को जब उनके पिता दशरथ महाराजने राज्यलक्ष्मीसे विमुख कर दिया उस समय वे अपने छोटे भाई लक्ष्मणके द्वारा लाये हुए जंगली बल्कलों और फलोंसें अपना काल यापन करने लगे. किंतु ऐसे समयमें जब उनकी प्रिया सीताको दशमुख रावण ही हर लेगया तब तो वे अपनी उस प्रियासे पुनः स्वममें भी संयोग होगा इस बातको असंभव समझने लगे । और इसीलिये शोकरूपी विषकी ज्वालाओंसे संतप्त होगये । किंतु यह उनके पुण्यका ही माहात्म्य था जो कि उसी समय हनूमान आकर प्राप्त हुए-मिले, और उ - -- अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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