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अनगार
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अध्याय
आपत्तियों में फंसाये हुए, किं बहुना और भी अनेक प्रकारकी दुरवस्थाओंमें घिरे हुए इस मनुष्यका उद्धार कर उसे उन क्षुदादि दुःखोंसे निकाल कर, भले प्रकार पाला गया धर्म ही, प्रमोदको प्राप्त कराता है।
उक्त धर्मका समर्थन करनेकेलिये तीन श्लोकोंमें क्रमसे सगर मेघवाहन और रामचंद्रको दृष्टांतरूपमें उपस्थित करते हैं ।
सगरस्तुरगेणैकः किल दूरं हृतोऽटवीम् ।
खेटै: पुण्यात्प्रभृकृत्य तिलकेशीं व्यवाह्यत ॥ ५१ ॥
आगमके द्वारा यह बात मालूम होती है कि एकाकी द्वितीय चक्रवती सगरको जब घोडा सुदूरवर्ती अटमें हरकर ले गया तब वहांपर पूर्व पूण्यके प्रतापसे सगरने सहस्रनयन आदि विद्याधरोंके द्वारा अपनेको सेवक और सगरको स्वामी मानकर दीगई तिलकेशी नामकी विद्याधरकन्या - वरिल के साथ विवाह किया ।
दूसरा मेघवाहनका उदाहरण
कर्णे पूर्ण
सहस्रनयनेनान्वीर्यमाणोऽजितं,
सर्वज्ञं शरणं गतः सह महाविद्यां श्रिया राक्षसीम् ।
दत्त्वा प्राग्भवपुत्रवत्सलतया भीमेन रक्षोन्वय, -
प्रायो ऽरच्यत मेघवाहन स्वगः पुण्यं क जागर्ति न ॥ ५२ ॥
१ इसकी और आगे मेघवाहन तथा रामचंद्रजीकी कथा पद्मपुराणमें देखनी चाहिये.
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धर्म०