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________________ स्थानके अनंतर मुद्राका नामोल्लेख किया था अतएव क्रमके अनुसार मुद्राओंका वर्णन होना चाहिये । मद्रा अनेक प्रकार की होती हैं किंतु कृतिकर्मके योग्य चार तरह की ही मुद्रामानी गई हैं। जिनमुद्रा योगमुद्रा बन्दनामुद्रा और सत्ताशक्तिसगा । इनमेसे पहले आदिकी दोनों मुद्राओंका स्वरूप बताते हैं: व मुद्राश्चतस्रो व्युत्सर्गस्थितिजैनीह यौगिकी। .. - न्यस्तं पद्मासनायके पाण्योरुत्तानयोईयम् ॥ ५॥ - मद्रा पर प्रकारकी हैं जिनमुद्रा योगमुद्रा वन्दनामुद्रा और मुक्ताशुक्तिमुद्रा । दोनों भुजाओंको लटकाकर और दोनों पैरोंमें चार अंगुलका अंतर रखकर कायोत्सर्गके द्वारा-शरीरको छोडकर खडे रहनेका नाम जिनमद्रा । है। इसका स्वरूप पहले लिखा जा चुका है। इसके सिवाय जिनमुद्राका आगम भी यही लक्षण लिखाहै। यथा: जिनमुद्रान्तरं कृत्वा पादयोश्चतुरगुलम् । ऊर्वजानोरवस्थानं प्रलम्बितभुजद्वयम् ॥ . पद्मासन पर्यकासन और वीरासनका स्वरूप पहले लिखा जा चुका है। इन तीनों से कौनसे भी आसनको मांडकर नाभिके नीचे ऊपरको हथेली करके दोनों हाथ ऊपर नीचे रखनेसे योगमद्रा होती है। जैसा कि कहा मीकि जिनाः पद्मासनादीनामङ्कमध्ये निवेशनम् । . उत्तानकरयुग्मस्य योगमुद्रां बभाषिरे ॥ वन्दना मुद्रा और मुक्ताशुक्ति मुद्राका स्वरूप बताते हैं: स्थितस्याध्युदरं न्यस्य कूपरौ मुकुलीकृतौ । '. करौ स्याद्वन्दनामुद्रा मुक्ताशुक्तियुतागुली ॥८६॥ १-इसी अध्यायके इलोक ७० मोक्षार्थी जितनिद्रकः आदिके प्रलंबितभुजायुग्म इत्यादि शब्दोंके द्वारा । बध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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