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________________ अनगार ८०९ अध्याय ७ भावार्थ- समाधिके बाघक कारणों या दोषोंसे रहित और साधक कारणों या उपयुक्त गुणोंसे युक्त स्थानका ही साधुओंको वन्दना केलिये आश्रय लेना चाहिये । अत एव आगम में वर्ज्य और उपादेय इस तरह दो प्रकार के स्थान बताये हैं। जैसा कि कहा भी है कि: संसक्तः प्रचुरच्छिद्रस्तृणपश्वादिदूषितः । विक्षोभको हृषीकाणां रूपगंधरसादिभिः ॥ परीकरो वंशशीतप तातपादिभिः । असंबद्धजनालापः सावयारम्भगतिः ॥ भाभूतो मनोऽनिष्ट: समाधाननिषूदकः । योऽशिष्टजन संचारः प्रदेशं तं विवर्जयेत् ॥ विविक्तः प्रातुकः सेव्यः समाधानविवर्धकः । देवर्जुदृष्टिसंपातवा तो देवदक्षिणः ॥ जनसंचारनिर्मुक्तो प्राह्मो देशो निराकुलः ॥ नासन्नो नातिदूरस्थो सर्वोपद्रववर्जितः aster अनेक लोगोंका संसर्ग पाया जाता हो, जहां सर्प बिच्छू मूषक आदिके छिद्र प्रचुरता से पाये जांय, जो तृण कंटक या पशु पक्षी आदिके द्वारा खराब हो गया हो, जिसके रूप रस या गंधादिकके निर्मित्तसे इन्द्रि योंमें बिलकुल क्षोभ उत्पन्न होजाय, जहांपर दंशमशक या शर्दी गर्मी अथवा धूप वर्षा आदि के निर्मत्तसे परीष उपस्थित होती हों, जहाँपर उन्मत्त आदि मनुष्योंका असंबद्ध प्रलाप हो रहा हो अथवा जहांपर पूर्वापर सम्बन्ध रहित बोलनेवाले लोगों का कोलाहल पाया जाय, जो सावद्य आरम्भके निमित्तसे गर्हित-निंद्य है, जो ऊष्मा आदि के निमित्तसे गीला हो रहा हो, और जो मनके लिये अप्रिय-अरति उत्पन्न करनेवाला, एवं चित्तमेंसे निराकुल शांति या साताको नष्ट करदेनेवाला है और जहांपर अशिष्ट लोगों का संचार - इतस्ततः भ्रमण या गमनागमन पाया जाता है ऐसा स्थान साधुओंके लिये वर्ज्य है। किंतु इसके विपरीत जो एकांत जहां लोगोंका संसर्ग या गमनागमनादिक नहीं पाया जाता, जो सम्मूर्डन जीवोंसे रहित, सेवन करने योग्य, और चित्तमें अतिशय समाधान उत्पन्न करने वाला १०२ F BL FEES ८०९
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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