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________________ पशमसे उत्पन्न होनेवाली स्वाभाविक शक्ति और आहारादिके निमित्तसे संचित होनेवाली वैभाविक शक्ति मौजूद हो, और जिसकी आत्मा सम्यक्त्वादिके निमित्तसे शुद्ध हो चुकी है अर्थात् जो भव्य होने के सिवाय चतुर्थादि गुण. स्थानवी है । एवं जिसके परिणामोंमें विशुद्धि पाई जाती है । जैसा कि कहा भी है कि: मोक्षार्थी जितनिद्रो हि सूत्रार्थ: शुभक्रियः । . बलवीर्ययुतः कायोत्सर्गी भावविशुद्धिभाक् ।। इस कायोत्सर्गका प्रयोजन अतिचारोंका शोधन करना है। जिन नाम आदिकोंका उच्चारण आदि करना आगममें निषिद्ध है उनका अनुष्ठानादि करनेसे उत्पन्न होनेवाले अनीचारोंको इस कायोत्सर्गके द्वारा दूर किया जाता है। वे निषिद्ध नामादिक छह हैं-नाम स्थापना द्रव्य क्षेत्र काल माव । रूखे कठोर असभ्य मर्मभेदी आदि शब्द निषिद्ध नाम कहे जाते है। इसी प्रकार स्थापना आदिके विषयमें भी समझना चाहिये । इनके सेवन करनेसे अथवा और भी किसी निमित्तसे जो दोष लगते हैं उनका संशोधन करना कायोत्सर्गका हेतु है। इसके सिवाय कायोत्सर्ग करनेसे तपकी वृद्धि और कर्मोंकी निर्जरा भी हुआ करती है। अत एव ये भी उसके हेतु हैं। जैसा कि कहा भी है कि: आगःशुद्धितपोवृद्धिकर्मनिजेरणादयः । कायोत्सगस्य विज्ञेया हेतवो व्रतवर्तिना ॥ ऊपर निषिद्ध नामादिक छह मेदोंके नाम लिखे हैं। उनके अनुष्ठानसे लगे हुए दोष कायोत्सर्गके द्वारा दूर होते हैं, अतएव कायोत्सर्गके भी छह भेद हैं । सावद्य नामोंके उच्चारणादिसे लगे हुए दोषोंकी शुद्धिके लिये जो का. योत्सर्ग किया जाय उसको अथवा कायोत्सर्ग इस शब्दकोही नामकायोत्सर्ग कहते हैं । मिथ्यात्वकी वर्धक या जनक अथवा पापकी उत्पादक स्थापनाके निमित्तसे लगे हुए दोषोंका उच्छेद करने के लिये जो किया जाय उसको अथवा कायोत्सर्गरूप परिणत प्रतिबिम्बको स्थापना कायोत्सर्ग कहते हैं। सावद्य द्रव्यका सेवन करनेसे लगे हुए अतीचा. रोको दूर करने के लिये जो कायोत्सर्ग किया जाय उसको, अथवा जिसमें कायोत्सर्गका वर्णन किया गया है ऐसे पाय ७९९
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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