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________________ बनगार ७९८ पालन करनेवाला कैसा होना चाहिये ? वह क्यों किया जाता है और वह कितने प्रकारका है ! इन चार बातोंका निर्णय करने के लिये क्रमसे उसका लक्षण, प्रयोका-स्वामी, और हेतु-साधन तथा भेद-विधान इन चार बातोंका निर्देष करते हैं: मोक्षार्थी जितनिद्रकः सुकरणः सूत्रार्थविद्वीर्यवान्, शुद्धात्मा बलवान् प्रलम्बितभुजायुग्मो यदास्तेऽचलम् ऊर्ध्वजुश्चतुरंगुलान्तरसमानांधिनिषिद्धाभिधा, द्याचारात्ययशोधनादिह तनूत्सर्गः स षोढा मतः ॥ ७० ॥ दोनों पैरोंमें चार अंगुलका अन्तर रखकर एक सीधर्म उनको इस तरहसे रखना कि जिसमें एक पैर दूसरेसे आगे पीछे न हो, और जंघाओं को भी ऊपर की तरफ सीधा करके तथा दोनो बाहुओंको नीचे की तरफ लटकाकर निश्चल खडे रहनेको कायोत्सर्ग कहते हैं। अथवा काय शब्दसे शरीर सम्बन्धी ममत्व भी कहा जाता है। अत एव शरीर के विषय में ममत्व न रखनेको भी कायोत्सर्ग कहते हैं । जैसा कि कहा भी है कि: ममत्वमेव कायस्थं तास्थ्यात् कायोऽभिधीयते । तस्योत्सर्गस्तनूत्सर्गो जिनबिम्बाकृतेर्यते॥ अर्हन्त भगवानकी मूर्ति के समान निर्ग्रन्थ आकृति-मुद्रा धारण करनेवाला संयमी जो शरीरके ममत्वको छोडता है उसके इस कार्य को ही कायोत्सर्ग कहते हैं। क्योंकि काय शब्द से आचार्योंने तद्विषयक ममत्व ही लिया है। इस कायोत्सर्गको धारण करनेका अधिकारी वह मुमुक्षु ही हो सकता है जो कि निद्राको जीतनेवाला हो, जिसकी क्रियाए और परिणाम प्रशस्त हों, जो आगमके अर्थको जाननेवाला हो, जिसमें वीर्यान्तराय कर्मके क्षयो बध्याय ७९८ १-बोपरिदबाहुजुम्लो चतुरंगुलमंतरेण समपादं । सषगचलणरहियो काओस्सग्गो विसुद्धो हु ।।
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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