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बनगार
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बध्याय
आलोचणं दिवसियं राइय इरियावहं च बोद्धव्वं । पक्खय चादुम्मासिय संवच्छरमुत्तमट्ठे च ॥
इस प्रकार आचार शाखके अनुसार प्रतिक्रमणके सात भेद हैं। किन्तु ग्रन्थान्तरों में इनके सिवाय और भी भेद बताये हैं। परन्तु उनका इन सात भेदोंमें ही अन्तर्भाव हो जाता है । इसी बातको बताते हैं:सोन्त्ये गुरुत्वात् सर्वाती चारदीक्षाश्रयोऽपरे । निषिद्धि के र्यालुञ्चाशदोषार्थश्च लघुत्वतः ॥ ५८ ॥
सम्पूर्ण अतीचार सम्बन्धी और दीक्षा सम्बन्धी प्रति क्रमण अन्तके उत्तमार्थ प्रतिक्रमणमें अन्तर्भूत हो जाते हैं । क्योंकि उनके भक्ति और उच्छ्रास दण्डकका पाठ बहुत ज्यादा है । जिस समय दीक्षा ली उस समय से लेकर संन्यास ग्रहण करने के समय तक जो जो दोष या अपराध हुए हों उनकी निन्दा गर्दा और आलोचना करने को सर्वातीचार प्रतिक्रमण कहते हैं । तथा व्रत ग्रहण करनेमें जो दोष लगेहों उनकी निन्दा आदि करनेको दीक्षा सम्बन्धी प्रतिक्रमण कहते हैं ।
ये दोनों ही प्रतिक्रमण गुरु-बडे हैं इसलिये इनका उत्तमार्थ में समावेश हो जाता है । इस कथन से अर्थात् गुरुशब्दका उल्लेख करके ग्रन्थकारने यह बात व्यक्त करदी है कि बृहत् प्रतिक्रमणाएं सात प्रकारकी हुआ करती हैं। जिनके कि-नाम इस प्रकार हैं, - व्रतासेपणी, पाक्षिकी, कार्तिकान्त चातुर्मासी फाल्गुनान्त चातुर्मासी, आषाढान्त सांवत्सरी, सार्वातीचारी, और उत्तमार्थी ।
अतिचार सम्बन्धी प्रतिक्रमणा सार्वातीचारीमें और जिसमें तीन प्रकारके आहारका परित्याग किया जाता है वह उत्तमार्थी में अन्तर्भूत होजाती है; अत एव इनका पृथक् नामोल्लेख नहीं किया है। बाकीकी पांच प्रतिक्रमणाएं वर्षके अंतमें कीजाती हैं। और योगान्ती प्रतिक्रमणा सांवत्सरीमें अन्तर्भूत हो जाती है । जैसा कि कहा मी है कि:
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धर्म०
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