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________________ बनगार ७२८ अध्याय SEA धर्मध्यानके आज्ञाविचय अपायविचय विपाकविचय और संस्थानविचय । तथा शुक्लध्यानके पृथक्त्ववितर्कवचिार एकत्ववितर्क सूक्ष्मक्रियाप्रतिप। और व्युपरतक्रिया निवृत्ति । इष्टपदार्थ स्त्री पुत्र धन गृह आदिका वियोग होजानेपर दुःखके साथ उसकी प्राप्तिकेलिये पुनः पुनः विचार करना, अथवा संयोग रहनेपर भी संयोग ही बना रहे कभी वियोग न हो ऐसा उसके विषय में बार बार विचार करते रहना इसको इटवियोग नानका अर्तिध्यान कहते हैं। इसी प्रकार अनिष्ट पदार्थका संयोग हो जानेपर उसके वियागके लिये अथवा वियोग रहनेपर उसका कभी भी संयोग न होनेके लिये पुनः २ विचार करनेको अनिष्टसंयोग नामका अतिध्यान कहते हैं । तथा कभी आधि व्याधि प्राप्त न हो इस तरहका अथवा उनके प्राप्त होनेपर उनके दूर होनेके लिये चिन्ता करते रहनेको पीडाचिन्तवन, और भविष्यत् में भोगादिकोंकी अभिलाषा पूर्ण करने के लिये संकल्प करनेको निदान आर्तध्यान कहते हैं । हिंसा झूठ चोरी और कुशील अथवा परिग्रहमें आनन्द मानना तथा उनकेलिये खुशीके साथ प्रवृत्ति करना इसको ही क्रममे हिंसानंद मृषानंद चौर्यानंद और परिग्रहानंद कहते हैं। अरिहंत देवकी आज्ञाका मुझसे भंग न हो यद्वा कोई भी उसका भंग न करे तथा सर्वत्र उसका प्रचार हो ऐसा विचार कग्नेको आज्ञा विचय, ये सम्पूर्ण संसारी प्राणी जो अनेक प्रकारके दुःखोंको भोग रहे हैं वे उनसे कब मुक्त हां ऐसा विचार करनेको अपाय विचय, और ये सभी संसारी जीव कर्मोदयके वशमें पडकर इस तरह संष्टि हो रहे हैं ऐसे कर्म फलके विषय में बार बार विचार करनेको विपाकविचय, तथा लोकके आकारादिके विषययें पुनः पुनः विचार करनेको संस्थान विचय नामका धर्मध्यान कहते हैं । वितर्क शब्दका अर्थ श्रुत और वीचार शब्दका अर्थ व्यंजन तथा योगकी संक्रांति होता है। जिस ध्यानमें पृथक्त्व - योगों की भिन्नता के साथ साथ ये दोनों बातें रहें उसको पृथक्त्व वितर्कवीचार नामका शुक्लध्यान कहते हैं. और जिसमें एक ही योग के साथ वितर्क तो हो पर वीचार न हो उसको एकत्व वितर्क कहते हैं। जिसमें काययोगी भी स्थूल परिणति छूट जाती हैं किन्तु मन्दस्पन्दता ही रहजाती है उसको सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति, और जिसमें सम्पूर्ण ही क्रिया छूट जाय उसको व्युपरतक्रियानिवृति नामका शुक्लध्यान कहते हैं। JA轕舔袋袭O鍌S IS INDIANADA SATA II SARI TAR ७२८
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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