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________________ अनगार ७२२ नियतकालके भी दो भेद होते हैं जिनका कि स्वरूप इस प्रकारसे माना है कि: तत्राप्याद्यः पुनद्वैधा नित्यो नैमित्तिकस्तथा । आवश्यकादिको नित्यः पर्वकृत्यादिकः परः॥ ९७॥ कायत्यागका पहला भेद परिमितकाल दो प्रकारका होता है, एक नित्य दूसरा नैमित्तिक । आवश्पकों अथवा मलोत्सर्ग आदिके सम्बन्धमे जो किया जाय उसको नित्य, तथा अष्टमी चतुर्दशी आद पर्वसम्बन्धी क्रियाओंके अवसरपर या निपद्या क्रियाओं के समय जो किया जाय उसको नैमित्तिक कायत्याग कहते हैं । सार्वकालिक कायत्यागके तीन भेद हैं:-- भक्तत्यागेङ्गिनीप्रायोपयानमरणैस्त्रिधा । यावज्जीवं तनुत्यागस्तत्राद्योऽहादिभावभाक् ॥ ९८ ॥ प्राणान्तिक कायत्यागके तीन भेद हैं । भक्तत्याग मरण, इङ्गिनीमरण और प्रायोपयानमरण । जिसमें प्रधा' नतया भोजन के त्यागकी अपेक्षा हो उसको मक्तत्याग या भक्तप्रत्याख्यानमरण कहते हैं। जिसमें स्वयावृत्यकी अपेक्षा तो हो किन्तु पर वैयावृत्यकी अपेक्षा न हो उसको इङ्गिनी मरण, और जिसमें दोनों ही प्रकारकी वैयावृत्यकी अपेक्षा न हो उसको प्रायोपयान मरण कहते हैं। प्रायोपगमन तथा पादोपगमन भी इसीके अपर नाम हैं। इनमेंसे पहले भेद भक्तप्रत्याख्यानमें अई लिङ्ग शिक्षा आदि अनेक भाव हुआ करते हैं जिनके किनाम और स्वरूप संक्षेपसे इस प्रकार हैं: विचार पूर्वक भोजनका परित्याग करने केलिये जो योग्य है उसको अहं कहते हैं । लिङ्ग नाम चिन्हका है । श्रुत्र के अध्ययन करनेको शिक्षा कहते हैं। विनय शब्दका अर्थ मर्यादा अथवा उपासना होता है। समाधान अथवा शुभोपयोग में मनके एकाग्र करनेको समाधि कहते हैं। अनिश्चित क्षेत्रों में निवास करनेका नाम अनियत विहार है । अपने कार्यके पर्यालोचनको परिणाम, और परिग्रहके त्यागको उपध्युज्झा, तथा उतरोत्तर आरोहण अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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