SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 709
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगार ६९७ अध्याय ७ भावार्थ – आगम में भिन्न भिन्न अपराधोंके लिये भिन्न भिन्न प्रकारका ही यश्चित्त भी बताया है। अत एव तपस्वियों को आलोचन प्रतिक्रमण तदुभय विवेक व्युत्सर्ग और तप इन छडमेंसे यथायोग्य – अपराधके अनुरूप प्रायश्चित्त लेकर अपराधकी शुद्धि करलेनी चाहिये । जैसे कि आचार्य से पूछे विना आतापन आदिके करनेपर, दूसरे के परोक्षमें उसकी पुस्तक पीछी आदि उपकरणोक लेलेनेपर, प्रमादमे आचार्य प्रभृतिकी आज्ञाका पालन न करनेपर, संघके स्वामीसे पूछे बिना उसके प्रयोजनसे कहीं भी जाकर पुनः आजानेपर दूसरे संघसे बिना पूछे अपने संघ में आजानेपर, देशकालके नियमानुसार जिन विशेष व्रतोंका अवश्य ही पालन करना चाहिये उनको धर्मकथा अदिके व्यासङ्गसे भूलजानेपर किन्तु पुनः उनका पालन करलेनेपर, इसी तरह के और भी अपराध बनजानेपर केवल आलोचन प्रायश्चित्त करना चाहिये । पांच इन्द्रिय और छट्ठा मन तथा इसी तरह वचन आदि क्रियाओंका भी दुरुपयोग होजानेपर, आचार्य आदिसे अपने हाथ पैर आदिका धक्का लगजानेपर, व्रत समिति और गुप्तियोंका पालन अत्यंत अल्प होनेपर, चुगली अथवा कलह आदि करनेपर, वैयावृत्य और स्वाध्याय आदिमें प्रमाद करनेपर, गोचरीकेलिये जाते हुए जननेंद्रिय में विकार होजानेपर इसी तरह और भी संक्लेश करनेवाली क्रियाओंके होजानेपर प्रतिक्रमण प्रायश्चित करना चाहिये। यह प्रायश्चित दिन और रात्रिके अन्तमें - सायंकाल और प्रातःकाल तथा भोजनकेलिये जाने आदि के समय किया जाता है। जैसा कि इसकी व्यहार प्रसिद्ध भी है। केशलोच नखाँका छेदन दुःस्वप्न और इन्द्रियोंका अतीचार तथा रात्रिभोजन में पक्ष मास संवत्सर आदिका दोष लगजानेपर उभय प्रायश्चित्त ग्रहण करना चाहिये । मौन आदिके धारण किये बिना ही आलोचन करनेपर, उदरमेंसे क्रिमिके निकलनेपर, हिम अथवा दंशमशक आदि के निमित्तसे यद्वा महावातादि के संघर्ष से अतीचार लगजानेपर, स्निग्ध भूमि हरित तृण यद्वा कर्दम आदि के ऊपरसे चलनेपर, घोंटुओं तक जलमें प्रवेश करजानेपर, अन्यनिमित्तक वस्तुको अपने उपयोग में लेआनेपर नावके द्वारा नदीपार होनेपर, पुस्तक या प्रतिमा आदिके गिरादेनेपर पंच स्थावरोंका विघात होजानेपर, यद्वा वि ८८ धर्म • ६९७
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy