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________________ अनगार जिस रत्नत्रयमार्गका साधु आराधन करता है उसका यदि एकदेशरूपसे विराधन होजाय तब तो आकपितादिक दश दोषोंसे रहित पदविभागकी नामकी आलोचना करनी चाहिये । और यदि दोष बडा हो या स्मरणमें न आसके अथवा प्रतभंग हो जाय तो औधी नामक आलोचना करना उचित है । इसी बातका दश दोषों के नाम और लक्षण बताते हुए पांच पद्यों में वर्णन करते हैं: आकम्पितं गुरुच्छेदभयादावर्जनं गुरोः । तपःशूरस्तवात्तत्र स्वाऽशक्त्याख्यानुमापितम् ॥ ४॥ यद् दृष्टं दृषणस्यान्यदृष्टस्यैव पृथा गुरोः । बादरं बादरस्यैव सूक्ष्मं सूक्ष्मस्य केवलम् ॥ ११ ॥ छन्नं कीदृक्चिकित्से दृग्दोषे पृष्टेति तद्विधिः । शब्दाकुलं गुरोः स्वागः शब्दनं शब्दसंकुले ॥ ४२ ॥ . दोषो बहुजनं सूरिदत्तान्यक्षुण्णतत्कृतिः । बालाच्छेदग्रहोऽव्यक्तं समात्तत्सेवितं त्वतौ ॥ ४३ ॥ दशेत्युज्झन् मलान्मूलाप्राप्तः पदविभागिकाम् । प्रकृत्यालोचनां मूलप्राप्तश्चौघी तपश्चरेत् ॥ १४ ॥ (पञ्चकम् ) जिस रत्नत्रयमार्गका साधु आरधन करता है उसका प्रमादवश एक देशरूपसे विराधन होजानेपर मुमुक्षुको दश दोष छोडकर पदविभागिका नामक आलोचन करके प्रायश्चित्त तपका अनुष्ठान करना चाहिये विशेष आलोचनाको पदविभागिका कहते हैं। जिस सम दीक्षा ग्रहण की हो उसी समयसे जो जब जहां अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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