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________________ अनगार प्रवापसे साधु प्रकाशस्वभाव परमात्मतेजको अथवा श्रुतज्ञानको भी प्राप्त हुआ करता है। इस प्रकार अवमौदर्य तपका वर्णन करके क्रमानुसार वृत्तिपरिसंख्यान तपका लक्षण और उसका फल बताते हैं। भिक्षागोचरचित्रदातृचरणामत्रान्नसद्मादिगात्, संकल्पाच्छमणस्य वृत्तिपरिसंख्यानं तणेङ्गस्थितिः। नैराश्याय तदाचरेन्निजरसासृग्मांससंशोषण, द्वारेणेन्द्रियसंयमाय च परं निर्वेदमासेदिवान् ॥ २६ ॥ मिक्षाके विषय में दाता, गमन, पात्र, अन्न और गृह आदिके सम्बन्धसे अनेक प्रकारके संकल्प किये जा सकते हैं। उनमेंसे कोई भी विशिष्ट अभिप्राय रखकर आहार ग्रहण करनेको वृत्तिपरिसंख्यान नामका तप कहते हैं । क्योंकि साधुओंकी शरीरकीलये संकल्पपूर्वक होनेवाली वृत्तिका ही नाम वृत्तिपरिसंख्यान है। यह संकल्प दाता आदिके सम्बन्धसे नीचे लिखे अनुसार अनेक प्रकारका हो सकता है। यथा दाताके सम्बन्धसे-चातुर्वर्ण्य में से जिनके यहांका भोजन ग्रहण कर सकते हैं उनके विषयमें ऐसा विचार करना कि आज यदि ब्राह्मण पडगावेगा तब तो भोजन करेंगे, अन्यथा नहीं। इसी प्रकार क्षत्रियादिके विषयमें । अथवा ऐसा संकल्प करना कि आज यदि वृद्ध पुरुष प्रतिग्रह करेगा तब तो भोजनकेलिये ठहरेंगे, अन्यथा नहीं। इसी तरह बाल युवा आदिके विषयमें समझना चाहिये । यद्वा ऐसा विचार करके भोजनके लिये निकलना कि आज यदि जूता पहरकर सामने आता हुआ व्यक्ति भोजनके लिये कहेगा तो ठहरेंगे, अन्यथा नहीं । अथवा बीच मार्गमें खडा होकर पडगावेगा तो ठहरेंगे, अन्यथा नहीं। यद्वा ऐसा विचार करलेना कि हाथीपर चढा हुआ व्यक्ति प्रतिग्रह करेगा तभी भोजन करेंगे, अन्यथा नहीं। इस सम्बन्धमें पुरुषकी तरह स्त्रियों के विषयमें भी परिसं १ कुंडी आदि भाजन -वर्तन । अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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