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________________ अनगार ६७१ अध्यान . भावना करनेसे हो सकता है। इसीलिये साधुओंको वैसा करनेका उपदेश देते हैं: भुक्त्या लोकोपयोगाभ्यां रिक्तकोष्ठतया सतः । वेद्यस्योदीरणाश्चान्नसंज्ञामम्युद्यतीं जयेत् ॥ २० ॥ आहारसंज्ञा चार कारणोंसे उद्भूत हुवा करती है- भुक्त्युपयोग, रिक्तकोष्ट, और असातावेदनीय कर्मकी उदीरणा । जैसा कि कहा भी है कि: * आहारदंसणेण य तस्सुवओगेण ओमकोठाए । वेदसुदीरणाए आहारे जायदे सण्णा ॥ अर्थात् आहारकी तरफ दृष्टि डालनेसे, उसकी तरफ अपने मनका उपयोग लगानेसे, पेट खाली होने पर और क्षुधा वेदनीयरूप असाता कर्मका उदय होनेपर आहारके विषय में अभिलाषा उत्पन्न हुआ करती है । साधुओंको इसका निग्रह करना चाहिये । भावार्थ, निग्रह करने के उपायका उल्लेख नहीं किया है। क्योंकि वह आहारसंज्ञाके कारणों का प्रदर्शन करनेसे स्वयं मालूम हो जाता है । यह नियम है कि जिन कारणोंसे जिस कार्यकी उत्पत्ति हुआ करती है उनके अभाव में अथवा उनके विरुद्ध कारण मिलनेपर वह कार्य नहीं हो सकता । इस सिद्धान्त के अनुसार यह बात भी स्वयं ही सिद्ध हो जाती है कि आहार दर्शनादिके विरुद्ध भावना करनेसे आहार संज्ञाका भी निग्रह हो सकता है । अतएव अनशन तपके अभिलाषी साधुओंको प्रतिपक्ष भावनाओंके द्वारा आहार संज्ञाका निग्रह करने में सदा प्रवृत्त रहना चाहिये । अनशन तपकी भावना करने में साधुओंको प्रवृत्त करते हैं:शुद्धस्वात्मरुचिस्तमीक्षितुमपक्षिप्याक्षवर्गं भजम्, धर्म ० ६७१
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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