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________________ अनगार ६५७ अध्याय ६ का होता है - अचेतनकृत मनुष्यकृत तिर्यञ्चकृत और देवकृत क्रममे इन उपसर्गेको शिवभूतिनामक मुनि, युधिष्ठिर आदि पाण्डुपुत्र और सुकुमालस्वामी तथा विद्युच्चर प्रभृति अनेक उत्तम पुरुषोंने आत्मध्यानके द्वारा जीत कर के ही संसारका संहार किया था। भावार्थ - विना उपसगाँका सहन किये परमपदकी प्राप्ति नहीं हो सकती । पूर्व कालमें भी जिन उत्तम पुरुषोंने संसारको नष्ट कर अजरामर पदको प्राप्त किया था उन्होंने भी इन उपसर्गोंको सहन करके ही किया था । उपसर्गोंका सहन आत्मध्यानके द्वारा ही हो सकता है अत एव जिस प्रकार आगमप्रसिद्ध शिवभूति मुनि और एणिकापुत्रादिकोंने आत्मस्वरूपमें स्थिर होकर अचेतनकृत उपसर्गोका सहन किया, तथा पाण्डव गजकुमार गुरुदत्त प्रभृतिने मनुष्यकृत उपसगौका और सुकुमाल सुकोशल सिद्धार्थ आदिने तिर्यक्कृत उपसर्गोंका, तथा विद्युच्चर श्रीदत्त सुवर्णभद्रादिकोंने देवकृत उपसर्गों का सहन कर निर्भयपद प्राप्त किया, उसी प्रकार हे मुसुक्षुओ ! यदि उस पदके प्राप्त करनेकी इच्छा है तो आपको भी चिदानंदमय आत्मस्वरूपमें लीन होकर अचेतनादिमेंसे किसी के भी द्वारा उत्पन्न किये गये यथायोग्य प्राप्त हुए उपसगोंका सहन करना चाहिये । प्रकृत विषय - परीषहजय और उपसर्गसहनका उपसंहार कर मोक्षनगरी के पथिक साधुओं को बाह्य और अभ्यन्तर तपका आचरण करनेके लिये उद्यमी होनेको उपदेश देते हैं इति भवपथोन्मथस्थामप्रथिम्नि पृथूद्यमः, शिवपुरपथे पौरस्त्यानुप्रयाणचणश्चरन् । मुनिरनशनाद्यस्त्रैरुयैः क्षितेन्द्रियतस्कर, - प्रसृतिरमृतं विन्दत्वन्तस्तपः शिबिकां श्रितः ॥ ११२ ॥ इस प्रकार शिवनगरी के मार्ग - रत्नत्रय में विहार करते हुए और पूर्वाचार्योंका अनुगमन कर प्रतीतिको प्राप्त हुए साधुओंको संसार के मार्ग - मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्रका उच्छेदन करनेवाली शक्तिके प्रपंच महान् उत्साहको धारण करके तथा अनशन अवमौदर्य आदि बाह्म तपश्चरणरूपी तीक्ष्ण एवं दुःसह धर्म ६५७
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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