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________________ अनगार ५३ अध्याय १ गुणदो प्रकार हुआ करते हैं - १ साहजिक, २ आहार्य । माता पिताकी वंशपरम्परासे आये हुओंसाहजिक तथा गुरु आदिकी शिक्षासे उत्पन्न हुओं को आहार्य कहते हैं। पराक्रम, सौन्दर्य, प्रियंवदत्व आदिक साहजिक गुण हैं और कला आचरण मैत्री आदिक आहार्य गुण हैं । पुण्यवान् पुरुष मातापितासे आये हुए और शिक्षासे उत्पन्न हुए अर्थात् उक्त दोनो प्रकारके विक्रम कला सौंदर्य चर्या प्रियंवदत्त्व आदिक तथा जिनका रस, गोष्टी + प्रीतिपूर्वक पारस्परिक भाषणके समय नियत रूपसे स्थिर रहता है- जो सदा उदित रहनेवाले हैं और जिनमें से एक एकको भी दूसरे लोग प्राप्त करनेकी स्पृहा करते हैं- सबकी तो बात ही क्या ऐसे अनेक गुणोंसे जगत् में प्रतीतिको प्राप्त करलेता है। ऐसा पुण्याधिकारी पुरुष जिस समय हेमन्त शिशिर वसंत ग्रीष्म वर्षा और शरद इन सभी ऋतुओं में जहां बैठनेसे मन और इन्द्रियोंको तृप्ति प्राप्त होती है ऐसे-समस्त ऋतुओं के उच्च राजमहल में निष्कपट प्रेमी विद्वान् और रसिक मित्रोंके सरस वचनालापोंसे अपने मनको आनन्दोन्मुख करता हुआ बैठता है उस समय उसको कान्ताएं सूतृष्ण दृष्टिसे देखा करती हैं । सुधा मध्या और प्रगल्भा इन तीनों ही अवस्थाकी ऐसी स्वकीया नायिकाको कान्ता कहते हैं कि जिसका आचार पवित्र और नागरिक हो तथा जो चरित्रको ही अपना शरण मानती हो; एवंच निरभिमानता और क्षमासे युक्त हो । इस प्रकार पुण्यवान् सुखका दो लोकोंमें वर्णन करते हैं। - स्वगत - खुदको प्राप्त होनेवाली गुणसंपत्तिका वर्णन करके अब स्त्रीसम्बन्धी साध्वीवर्गविधिसाधनसावधानाः, कोपोपशमधुर प्रणयानुभावाः । लावण्यवारितरगात्रलताः समान, सौख्यासुखाः सुकृतिनः सुदृशो लभन्ते ॥ ३२ ॥ ५३
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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