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________________ अनगार बहुतसी जगहमें फैला श्रेणीसे युक्त है। जिसनारूपी भूमि उपभोगके योगकालये पदार्थोकी अमिला SOTHERREARESMATEANDSAUTPSSSREANTASAUTANG चक्रः सन्जीकृतरसभरः स्वच्छभावाम्बुपूरैः । नानाशक्तिप्रसवविसरः साधुपान्थौघसेव्यः , पुण्यारामः फलति सुकृतां प्रार्थितांलुम्बिशोर्थान् ॥ ३०॥ पुण्यात्माओंके पुण्यरूपी उपवनमें अभिलषित पदार्थ प्रचुरतासे फलते हैं । यह उपवन चेतनारूपी भूमिपर उत्पन्न होनेवाला और सातावेदनीय आदि कर्मप्रकृतिरूपी वृक्षोंकी श्रेणीसे युक्त है। जिस प्रकार उपवन आशाओं-दिशाओंको घेरलेता है-चारो तरफसे बहुतसी जगहमें फैला हुआ रहता है उसी प्रकार यह भी आशाओं-भविष्यत्केलिये पदार्थोकी अभिलाषाओंसे पूर्ण रहता है । इस उपवनमें निर्मल परिणामरूपी जलके पूरसे उपभोगके योग्य रसका भार तयार होता है। यह अनेक प्रकारकी शक्तिरूपी फूलोंके समूहसे युक्त है और इसका पथिकोंकी तरह साधुगण-त्रिवर्गके लोग आश्रय लेते हैं। यहाँपर शक्तिओंको फलोंकी उपमा देनेका यह प्रयोजन है कि उन्हीसे फलकी उत्पत्ति होती है। इसी प्रकार त्रैवर्गिकोंको पथिकोंकी उपमा इसलिये दी है कि वे नित्य ही मार्गमें-मोक्षमार्गमें गमन करते रहते हैं। पुण्यसे बहुतसे सहभावी वाञ्छित पदार्थ फलरूपमें प्राप्त होते हैं। यही बात दिखाते हैं: पित्र्यैर्वेनयिकैश्च विक्रमकलासौन्दर्यचर्यादिभि,.. गर्गोष्ठीनिष्ठरसैर्नृणां पृथगपि प्रायः प्रतीतो गुणैः। सम्यस्निग्धविदग्धमित्रसरसालापोल्लसन्मानसो, धन्यः सौधतलेऽखिलर्तुमधुरे कान्तेक्षणैः पीयते ॥ ३१ ॥ अध्याय १-खट्टा मीठा आदि इन्द्रियग्राह्य अथवा कमके विपाकरूप।
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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