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________________ अनगार उत्तम पुरुषार्थको प्राप्त करनेकेलिये उसका परिहार करदेते हैं उन्हीको विवेकी-हिताहितका विचारशील समझाजाता है उसी प्रकार शानावरणादि कमीक उदयके वशमें पडकर आत्माकी रङ्गभूमिमें अनेक प्रकारके रसों और मा. वोंके लोकोत्तर चमत्कारको परीक्षकोंके सम्मुख प्रकट करते हुए नृत्य करनेवाली चेतनाशक्तिका उत्कृष्ट पुरुषार्थ मोक्ष अथवा धर्मको प्राप्त करनेकेलिये परिहार करदेते हैं उन्हीके अनिर्वचनीय और उत्कृष्ट विवेक-शुद्धोपयोगमें स्थिरता प्रकट हो सकती है। भावार्थ-कर्मोदयके निमित्तसे होनेवाले किंतु नवीन कोंके ग्रहण करनेमें कारण आत्मप्रदेशपरिस्पन्दरूप योगका निरोध करदेनेवाले ही उस शुद्धोपयोगकी स्थिरताको प्राप्त कर सकते हैं जिससे कि मोक्षपुरुषार्थकी से द्धि हो सकती है। कोंके रोकनेको अथवा उसके उपायोंको संवर कहते हैं । वह शुद्ध सम्यग्दर्शनादिके भेदसे अनेक प्रकार का है । जो साधु इन प्रकारोंके द्वारा आस्रवके मिथ्यात्वादिक भेदोंका निरोध कर देता है उसको जो अशुभ कमौका संवरणरूप मुख्य फल और सम्पूर्ण सम्पत्तियों के प्राप्त करने की योग्यतारूप आनुपाङ्गिक फल प्राप्त होता है उसको बताते हैं मिथ्यात्वप्रमुखीद्वषबलमवस्कन्दाय दृप्यद्वलं रोडु शुद्धसुदर्शनादिसुभटान् युञ्जन् यथास्वं सुधीः । दुष्कर्मप्रकृतीने दुर्गतिपरीवर्तेकपाकाः परं, .निःशेषः प्रतिहन्ति हन्त कुरुते स्वं भोक्तुमुत्काः श्रियः ॥ ७३ ॥ जिस प्रकार प्रतिपक्षियोंके ऊपर विजय प्राप्त करनेकी इच्छा रखनेवाला कोई भी विद्याविनीतमति नायक उन शत्रुओंके बलका निरोध करनेके लिये कि जिनके पराक्रमका अहमहमिकासे और गर्वके साथ बढना अपने महत्वको नष्ट करदेनेके लिये हो, यथायोग्य सुभटोंकी योजना करता है-जैसे शत्रुकी तरफ योद्धा हों वैसे ही अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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