SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 582
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बनगार अपने चित्तको संयत रखता है उसीको इष्ट आत्मोपलब्धि हो सकती है। इस बातको बताते हैं: दोषो मेस्तीति युक्तं शपति शपति वा तं विनाज्ञः परोक्षे, दिष्टया साक्षान्न साक्षादथ शपति न मां ताडयेत्ताडयेद्वा । नासुन् मुष्णाति तान्वा हरति सुगतिदं नैष धर्म ममेति, स्वान्तं यः कोपहेतौ सति विशदयति स्याद्धि तस्यष्टसिद्धिः ॥७॥ उत्तम क्षमाका साधक जो मुमुक्षु किसीके गाली आदि देने अथवा निन्दा आदि करनेपर इस तरहका विचार करता है कि मेरे पापकर्मके उदयके वशीभूत हुआ यह जीव जिन दोषोंके सबबसे मेरी निन्दा कर रहा है, सचमुच में वे दोष मुझमें मौजूद हैं, अथवा मुझमें दोषोंके न रहनेपर भी जो मेरी यह बुराई करता है सो इसका यह लडकपन है, क्योंकि असद्भूत दोषोंका उद्भावन अज्ञ बालक ही कर सकते हैं, या किया करते हैं । अथवा मेरे परोक्षमें मेरी बुराई करके इसने मेरा बढप्पन ही रक्खा है। यदि कोई प्रत्यक्षमें ही निन्दा करता हो तो जो साधु ऐसा विचार करता है कि-" यह केवल मेरी निन्दा ही तो करता है मुझको मारता या पीटता तो नहीं है," यदि वह पीटता हो तो उसके विषयमें ऐसा विचार करता है कि “ मुझको पीटता ही हैन, मेरे प्राणों का अपहरण तो नहीं करता, " यदि कोई वैसा भी करनेलगे तो जो उत्तम क्षमाका निधि अपने मन में ऐसा विचार किया करता है कि "यह मेरे प्राणोंका अपहरण ही करता है न कि मेरे स्वर्गापर्वर्गरूप फल देनेवाले आत्मधर्मका" उपी साधुके अभीष्ट अर्थकी सिद्धि हो सकती है। भावार्थ--निन्दा आदि क्रोधके निमित्त मिलजानेपर भी जो साधु अपने हृदयको प्रशान्त रखता है-विकृत नहीं होने देता उसके व्रत शील आदि सब सुरक्षित रहते और इस लोकमें अथवा परलोकमें कहीं भी उसको FREEKKENNEKHEREKENSKER KAHAKAREKAKKAREENETIREMIRINEETIMES अध्याय १७. '१-इसको अपनेमें दोषोंके सद्भावका चिन्तवन करना कहते हैं।
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy