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हाथसे भूमिका स्पर्श करनेपर भूमिस्पर्श नामका अन्तराय होता है और स्वयं ही, न कि खांसी आदिके वशसे कफ थूक नाक आदिका निरसन करनेपर निठीवन नामका अन्तराय होता है। तथा ऊर्ध्वमार्ग-मुखकी तरफसे अथवा अधोमार्ग-गुदद्वारसे उदरगत क्रिमिके निकलने पर उसी नामका-उदरक्रिमिनिर्गमन अन्तराय होता है।
और दाताके दिये विना ही भोजन पान औषध आदि यदि ग्रहण करलिया जाय तो अदत्तग्रहण नामका अन्तराय होता है।
प्रहार ग्रामदाह पादग्रहण और करग्रहण इन चार अन्तरायोंका स्वरूप दो पद्योंमें बताते हैं:
प्रहारोऽस्यादिना स्वस्य प्रहारे निकटस्य वा । ग्रामदाहोग्निना दाहे ग्रामस्योद्धत्य कस्यचित् ॥ ५७ ॥ पादेन ग्रहणे पादग्रहणं पाणिना पुनः।
हस्तग्रहणमादाने भुक्तिविनोन्तिमो मुनेः ।। ५८॥ अपना (संयमीका । अथवा निकटवर्ती किसी अन्य व्यक्तिका खड्ग बर्डी आदिके द्वारा प्रहार होनेपर प्रहार नामका अन्तराय होता है । जिसमें स्वयंका निवास हो रहा हो एसे ग्रामके अग्निसे जलनेपर अग्निदाह नामका अन्तराय होता है । किसी भी रत्न सुवर्ण आदि वस्तुको पैरसे उठाकर ग्रहण करनेमें पादग्रहण नामका अन्तराय होता है। यदि किसी वस्तुको भूमिपरसे हाथके द्वारा उठाकर ग्रहण किया जाय तो करग्रहण नामका अन्तरा य माना है। इस प्रकार बत्तीस अन्तरायोंका वर्णन किया, किन्तु दो पद्योंमें शेष अन्तरायोंका भी संग्रह करते हैं: -
तद्वच्चाण्डालादिस्पर्शः कलहः प्रियप्रधानमृती । भीतिर्लोकजुगुप्सा सधर्मसंन्यासपतनं च ॥ ५९ ॥
ध्याय