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________________ RA -यनगार MMRRENESSSSS साचिक मावके आठ भेद हैं जिनके नाम ये हैं: स्तम्भः स्वेदोथ रोमानः स्वरभेदोथ वेपथुः । वैवर्ण्यमथुप्रलय इत्यष्टौ सात्त्विकाः स्मृताः। स्तम्भ खेद रोमाञ्च स्वरभंग कम्प विवर्णता अश्रु और प्रलय । रतिहासश्च शोकश्च क्रोधोत्साही भयं तथा। जुगुप्साविस्मयशमाः स्थायिभावा रसाश्रयाः॥ उपर्युक्त विभावादिके द्वारा व्यक्त होनेवाले स्थायी भावके नव भेद हैं; जिनके नाम ये हैं: रति हास शोक क्रोध उत्साह भय जुगुप्सा विस्मय और शम । इन्हीके आधारपर उसकी उत्पत्ति होती है। ये भाव भी नव हैं और इनसे उत्पन्न होनेवाले रस भी नव ही हैं, जिनके कि नाम ये हैं: शृङ्गारहास्यकरुणारौद्रवीरभयानकाः। बीमत्साद्भुतशान्ताच नव नाट्यरसाः स्मृताः ॥ श्रृंगार हास्य करुणा रौद्र वीर भयानक बीभत्स अद्भुत और शान्त । अत एव इनमेंसे एक एक रस क्रमसे एक एक स्थायिभावसे उत्पन्न होता है। यथा रतिसे श्रृंगार, हाससे हास्य, शोकसे करुणा, क्रोधसे रौद्र, उत्साहसे वीरः इत्यादि। . यहांपर एक बात और भी समझनेकी है । वह यह कि ऊपर जो व्यभिचारी भावके निवेदादिक भेद गनाये हैं वे जिसके हृद्रयमें बार बार उत्पन्न होकर पुष्टि प्राप्त करलेते हैं उसकेलिये वे ही रस होजाते हैं। जैसे कि रति यद्यपि भाव है। फिर भी पुष्ट होनेपर वह रस ही होजाता है। हां, जिसके हृदयमें ये भाव पुष्टिको प्राप्त नहीं करसकते उसकेलिये वे भाव ही हैं, रस नहीं। शृङ्गारहास्यकरण बध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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