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________________ अनगार ४७१ अध्याय 8 ते पंच पिय वयाणमावज्जणं च संखाओ । आदविवत्ती अह विजरादिभत्तप्पसंगति ॥ रात्रि में भक्तपानका संग्रह करनेपर मुनियोंको जो दोष लग सकते हैं वे इस प्रकार समझने चाहिये कि- पांचो व्रतों का परित्याग, शङ्का, और आत्मविपत्ति । ही भोजनका रात्रि में संग्रह तीन प्रकार से हो सकता है। एक रात्रिमें जाकर दाताके यहां भोजन ग्रहण करना । दूसरा रात्रिमें लाकर दिनमें भोजन करना । तीसरा दिनमें लाकर रात्रिमें भोजन करना। ये तीनो पक्ष अपायकर हैं । क्योंकि यदि रात्रि में भोजन के लिये भ्रमण करेगा तो हिंसा अवश्यम्भावी है। रात्रिमें प्रकाश न रहने के कारण प्राणियोंको देखा नहीं जासकता और फिर ईर्यासमितिका भी पालन नहीं हो सकता । है, तथा कोनसा स्थान पवित्र है और कौनसा अपवित्र कहां चलना चाहिये कहां रूकना दाताके यहां जाने आने का मार्ग, उसके और अपने ठहरनेका स्थान, और कहां झूठन आदिक पडी चाहिये आदि बातों का अवलोकन रात्रिमें अच्छी तरह नहीं हो सकता । न योग्य अयोग्य आहाकाही निरूपण हो सकता है । अत्यंत सूक्ष्म त्रस जीव जब कि दिनमें भी कठिनतासे ही देखे और बचाये जा सकते हैं तब रात्रिमें तो उनका परिहार हो ही किस तरह सकता है ? इस प्रकार रात्रिभोजन में प्रवृत्ति करनेवाला आहारका शोधन नहीं कर सकता और हिंसा के दोष से बच नहीं सकता । अच्छी तरह बिना परीक्षा किये ही भोजन करनेवाला एपणा समितिका भी पालन किस तरह कर सकता है ? और ऐसी - अयुक्त ए पणासमितिविषयक तथा पादविभागिके आलोचना करता हुआ वह सत्यवती भी किस तरह रह सकता है ! १ – मुनियोंकी आहोरात्रिक समीचीन चर्याको पदविभागी कहते हैं । अत एव जिसमें उसका वर्णन किया जाय उस आलोचनाको पादविभागिक कहते हैं। अच्छी तरह अपरीक्षित विषयमें एषणा प्रवृत्ति करनेवाला अपनी प्रवृत्तिकी पाद विभागिक आलोचना करनेमें सत्यव्रतका पालन किस तरह कर सकता है ? PAIRINNAAAAAA72A50점점점점점 ४७१
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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