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ऊर्ध्वमूलमधःशाखमृषयः पुरुष विदुः॥१.२॥
बनगार
धर्म
मनुष्योंको घोडेके समान बनादेनेवाले दुग्ध प्रभृति वीर्यवर्धक पदार्थोंको वाजीकरण कहते हैं। इसमें ऐसा कौनसा पदार्थ है जो कि उद्दुत-उत्तेजित होकर कामदेवको उद्भूत नहीं करदेता । सभी सगर्व वाजीकरण पदार्थ ऐसे ही हैं कि जिनके उपयोगसे अवश्य ही कामदेव जागृत होजाया करता है। क्योंकि ऋषियोंने पुरुषका स्वरूप उर्ध्वमूल और अधःशाख माना है। जिव्हा और कण्ठ प्रभृति अवयव मनुष्यके मूल हैं और हस्तादिक अवयव शाखाएं हैं । जिस प्रकार वृक्षके मूलमें किये गये सिञ्चनका परिणाम उसकी शाखऑपर पडता है उसी प्रकार जिव्हादिकके द्वारा उपयुक्त आहारादिकका प्रभाव हस्तादिक शरीरके अंगोंपर पड़ता है। यदि मनुष्य वाजीकरण पदार्थोंका सेवन करेगा तो अवश्य ही उसके शुक्रकी वृद्धि होकर कामदेव भी उत्तेजित होगा। अत एव साधुओंको ब्रह्मचर्य के साधनमें वृष्य पदार्थोके सेवनको विघ्नकारक समझकर अवश्य ही छोडदेना चाहिये । और समस्त इन्द्रियोंमें प्रधान रसनाको वशमें करना चाहिये ।
पूर्व कालमें ऐसे बहुतसे पुरुष होगये हैं जो कि मोक्षमार्गका अनुसरण करते थे किंतु ब्रह्मचर्य व्रतमें प्रमाद करनेके कारण संसारमें अत्यंत उपहासके ही पात्र हुए । अत एव इस महाव्रतके साधन करनेमें तत्पर रहनेवाले साधुओंको अच्छी तरह सावधानता रखनेका उपदेश देते हैं:--
दुर्धर्षोद्धतमोहशौल्किकतिरस्कारेण सद्माकराद्, भृत्त्वा सद्गणपण्यजातमयनं मुक्तेः पुरः प्रस्थिताः । लोलाक्षीप्रातसारकैर्मदवशैराक्षिप्य तां तां हठा,न्नता: किन्न विडम्बना यतिवराश्चारित्रपूर्वाः क्षितौ ॥ १०३ ॥
अध्याय
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किसी विक्रेय वस्तुके राज्यमें लानेपर अथवा राज्यसे बाहिर लेजानेपर यद्वा खान आदिमेंसे निकलनेवाले