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________________ बननार ३७३ त्रियोंका मन संदेहसे पूर्ण, नृशंसता-- क्रूरतासे युक्त और अत्यंत साहससे भरा हुआ मायाचारका घर है। यह योगियोंकेलिये भी अलक्ष्य है। किंतु कामसे अंधे हुए पुरुष इसको देख सकते हैं। स्त्रियोंमें मायाचार प्रभृति दोष प्रचुर रूपसे पाये जाते हैं अत एव उनको नरकके मार्गका अग्रेसर -प्रधान कारण बताते हुए इस बातका निरूपण करते हैं कि जितने दुष्कर्म हैं वे सब उस मार्गमें जानेवालोंके लिये सूत्रधारका ही काम करनेवाले हैं: दोषा दम्भतमस्सु वैरगरलव्याली मृषोद्या तडिन्,मेघाली कलहाम्बुवाहपटलप्रावृड् वृषौजोज्वरः । कन्दर्पज्वररुद्रभालगऽसत्कर्मोमिमालानदी, स्त्री श्वभ्राध्वपुरःसरी यदि नृणां दुर्दैव किं ताम्यसि ॥ ७५ ॥ जो दम्भ-मायाचार-प्रतारणारूपी अन्धकारका प्रसार करनेकेलिये दोषा-रात्रिके समान है। जो वैर-विद्वेषरूपी जहरको उगलनेकेलिये भूजङ्गी-सर्पिणीके समान है जो मृषावाद -- असत्यभाषणरूपी विजलीका चमत्कार दिखानेकेलिये कादम्बिनी-मेघमालाके समान है। जो कलह-आपसी झगडे या युद्धरूपी मेघपटलका अच्छी तरह उद्भव होनेकेलिये वर्षा ऋतुके समान है। जो धर्मरूपी ओज-शुक्रपर्यन्त धातुओंको परम तेजका संहार करनेकेलिये मानो महादेवका तीसरा नेत्र ही है। जो असत-सावध कर्मरूपी ऊर्मीमाला-तरङ्गपंक्तियोंकी पुनः पुनः प्रवृत्ति करनेकेलिये मानो नाके ही समान है। इस प्रकार सात विशेषणोंसे विशिष्ट स्त्री यदि मनुष्योंको नरकके मार्गमें लेजानेकेलिये सबसे अग्रेसर उपस्थित है, तब हे दुर्दैव ! तू अपनेको व्यर्थ ही क्यो खिन्न बनाता है? क्योंकि तेरा जो कार्य है वह तो इस प्रकारकी स्त्रीसे ही सिद्ध होजायगा। भावार्थ- मनुष्योंको नरकमें लेजानेवाला सबसे प्रधान यदि कोई है तो वह स्त्री ही है । दुष्कर्मोंको जो अध्याय NAVIGAR
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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