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________________ अनगार ३२१ . अध्याय ४ स प्रकार रत्न खानिमें ही उत्पन्न होते हैं उसी प्रकार समस्त चारित्र और व्रत नियमादिक भी इस अहिंसा के रहते हुए ही उत्पन्न हो सकते हैं। जैसा कि कहा भी है सर्वेषां समयानां हृदयं गर्भश्च सर्वशास्त्राणाम् । गुणशीलादीनां पिण्डः सारोपि चाऽहिंसा || यह अहिंसा समस्त सिद्धांतोंका हृदय, समस्त शास्त्रोंका गर्म, और व्रत गुण शीलं आदि गुणोंका पिण्ड है । इस प्रकार समस्त जगत् में सारभूत पदार्थ एक अहिंसा ही है । यह समस्त क्लेशरूपी सर्पराजोंके लिये गरुडका आघात है। क्योंकि जिस प्रकार गरुडकी चोंचके आघातसे बडे बडे भी सर्प विलीन होजाते हैं उसी प्रकार इस अहिंसा के माहात्म्यसे विशेष भी क्लेश निःशेष हो जाते हैं। यह आनन्दरूपी अमृतका समुद्र है । क्योंकि जिस प्रकार अमृतको सभी लोग चाहते हैं किंतु उसके उत्पन्न होनेका स्थान समुद्र ही है; उसी प्रकार आनन्द-प्रमोदको सभी संसारी चाहते हैं किंतु उसका उत्पत्ति स्थान अहिंसा ही है। यह अद्भुत गुणरूपी कल्पवृक्षोंकी भोगभूमि है । क्योंकि जिस प्रकार कल्पवृक्षोंसे साक्षात् इच्छित पदार्थ प्राप्त हुआ करते हैं उसी प्रकार अद्भुत -- जगत् में चमत्कार दिखा देनेवाले तपःसंयमादिक गुणोंसे भी अभीष्ट विषयोंका संपादन होता है। किंतु जिस प्रकार कल्पवृक्ष भोगभूमि – देवकुरु उत्तरकुरुमें ही उत्पन्न होते हैं उसी प्रकार अद्भुत गुण भी अहिंसा - भूमिपर ही उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार यह अहिंसा लक्ष्मी क्रीडा करनेका स्थान है। क्योंकि इसीमें वह निरातङ्कतया सुखपूर्वक रह सकती है और क्रीडा कर सकती है । इसी प्रकार यह यशके उत्पन्न होनेका भी स्थान है - कीर्तिकी जन्मभूमि है। क्योंकि इसके रहते हुए ही कीर्तिलता उत्पन्न हो सकती और प्रकाशित हो सकती है। ऐसी यह आठ विशेषणोंसे विशिष्ट अहिंसा साधुओंके ही अनन्य सामान्यतया प्रकाशित हो सकती है । भावार्थ - अहिंसाव्रतका उपसंहार करते हुए ग्रंथकार कहते हैं कि इस अहिंसाका माहात्म्य कहांतक अ. ध. ४१ धर्म● ३२२
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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