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________________ मनगार भावार्थ-अहिंसाव्रतको स्थिर रखनेकेलिये और उसके माहात्म्यको उजीवित करनेकेलिये मुमुक्षुओंको उपयुक्त पांच भावनाओंसे व्रतको संस्कृत करना चाहिये। इन उक्त भावनाओंके भानेवाले साधुओंका निजानुभवके भारपर निर्भर रहनेवाला अहिंसा महाव्रत अच्छी तरह प्रकाशित होता है। ऐसा बताते हैं सम्यक्त्वप्रभुशक्तिसंपदमलज्ञानामृतांशुदतिनि:शेषव्रतरत्नखानिरखिलक्लेशाहितार्थ्यांहतिः । आनन्दामृतसिन्धुरद्भुतगुणामांगभोगावनी, श्रीलीलावसतिर्यशःप्रसवभुः प्रोदेत्यहिंसा सताम् ॥ ३५ ॥ यह अहिंसा सम्यक्त्वरूपी प्रभुकी शक्तिसंपत्तिके समान है, जिस प्रकार कोई विजिगीषु राजा अपनी मन्त्रशक्ति प्रभुशक्ति और उत्साहशक्ति के द्वारा वैरिओंको निर्मूल करता है। उसी प्रकार सम्यक्त्व भी इस अहिंसाके द्वारा कोको निर्मूल कर देता है । अथवा यह अहिंसा मानो निर्मल ज्ञानरूपी चन्द्रमाका उदय है। क्योंकि जिस प्रकार चन्द्रमाके उदयसे जगत्को आल्हाद उत्पन्न होता है उसी प्रकार अहिंसासे भी शुद्ध ज्ञानके द्वारा संसारमें परम प्रमोद प्रकाशित होता है । यद्वा यह अहिंसा समस्त व्रताचरणरूपी रत्नोंकी खानि है। क्योंक जि १-मन्त्रशक्तिर्मतिबलं कोषदण्डबलं प्रभोः। प्रभुशक्तिश्च विक्रान्तिबलमुत्साहशक्तिता ।। बुद्धिबलको मंत्रशाक्ति, धन और दण्ड बलको प्रभुशक्ति, तथा पराक्रम-शारीरिक बलको उत्साहशक्ति कहते हैं। ...
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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