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________________ बनगार रीर सूक्ष्म एवं बादर निगोदियाओंसे प्रतिष्ठित नहीं है। बाकीके पंचेन्द्रिय विकलेन्द्रिय और वनस्पति जीवोंके शरीर प्रतिष्ठित हैं। जिन प्राणोंके व्यपरोपणसे हिंसाका महापाप लगता है वे प्राण दश हैं ऐसा पहले बताचुके हैं। कितु किस संसारी जविके कितने प्राण हैं यह बात आगमके अनुसार समझलेनी चाहिये । जो कि इस प्रकार है सर्वेष्वङ्गेन्द्रियापि पूर्णेष्वानः शरीरिषु । वाग द्वित्र्यादिहृषीकेषु मनःपूर्णेषु संज्ञिषु ।। ते संज्ञिनि दशैकैको हीनोन्यध्वन्त्ययोद्वय । अपर्याप्तषु सप्ताधोरेकैकोन्येषु हीयते ॥ कायबल इंद्रिय और आयु ये तीन प्राण सभी जीवोंके होते हैं । श्वासोच्छास पर्याप्तकोंके ही होता है। वचनबल दींद्रिय त्रीन्द्रिय आदि पर्याप्तकोंके और मनोबल प्राण पर्याप्त संज्ञियोंके ही होता है। इस प्रकार पर्याप्तकोंमें संज्ञियोंके दश और, आगे चलकर एक एक प्राण कम होता गया है । किंतु अन्तिम-एकेन्द्रियके दो प्राण कम होते हैं। अपर्याप्तकोंमें संज्ञी असंज्ञी पंचेन्द्रियके मन वचन और श्वासोच्छासको छोडकर सात प्राण होते हैं । और आगे चलकर एक एक इन्द्रियप्राण कम होता गया है । अत एव चतुरिन्द्रियोंके छह, त्रीन्द्रियोंके पांच, द्वीन्द्रियोंके चार और एकेन्द्रियोंके तीन प्राण होते हैं। १-संज्ञी पंचेंद्रियोंके पांच इंद्रिय, तीन बल, आयु और श्वासोच्छ्रास ये दश, असंज्ञी पंचेंद्रियोंके मनको छोड कर || नव, चतुरिन्द्रियोंके श्रोत्रको छोडकर आठ, श्रीन्द्रियोंके चक्षुको छोडकर सात, द्वन्द्रियों के प्राणको छोड कर छह और एकेन्द्रियोके रसना तथा वचनको छोडकर चार प्राण होते हैं। बध्याय ३०२
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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